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क्या पउमचरिय दिगम्बर ग्रन्थ है ।
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साथ २ रहना और दोनोकी एक ही गधकुटी बनना, (खं० २ पृ० १६२) लक्ष्मणका खरदूपणकी स्त्रीपर आसक्त होना,* (ख०२ पृ० २४३) देवोका परस्परयुद्ध, (ख० ३ पृ० २१) उत्कृष्ट अणुव्रती क्षुल्लकका शस्त्रविद्या सिखाना, (ख० ३ पृ०२४७) मुनि का रात्रिमे मामूली बात के लिये बोलना, (ख० ३ पृ० ३१८) ।
इन सबका विशेष कपन लेख बढ़ जाने के भयसे छोडा जाता है।
यहाँ मैं इतना स्पष्ट और कर देता हूँ कि पद्मचरितकी उक्त बातें जिन्हें देखना हो उन्हें माणिकचन्द्र ग्रन्थमोलासे प्रकाशित संस्कृत मूल पद्मचरित++देखना चाहिये उसीके ऊपर खंड, पृष्ठ लिखे गये हैं। स्वर्गीय प० दौलतरामजी कृत वचनिकामे प्रायः ये बाते न मिलेगी।
वचनिकार तो येही क्या और भी कितनी ही सैकड़ों वाते उडा गये है और इस तरह ग्रन्थकर्ताके कितने ही अभिप्रायोसे पाठकोको वचित रक्खा है। किसी अनुवादकको ऐसी कृति प्रशसनीय नही कही जासकती । सच तो यह है कि पचनि
* यह सिद्धांत विरुद्ध तो नही है किन्तु बात मई सी है।
++यह ग्रंय वहुत ही अशुद्ध छपा है। पं० वीरेन्द्रकुमारजी शास्त्री केकडीने एक हस्तलिखित प्रतिसे छपी प्रतिको मिलाकर उसकी ढेर अशुद्धिये छाटकर अलग सग्रह किया है। संस्कृत ग्रन्थका इस तरह चेपर्वाह और अधाधु धी से छपना अफसोसकी बात है । उन अशुद्धियोको शुद्ध कर लेनेपर भी प्राकृत लेखमे उठाये पये आक्षेपोमे कोई फेरफार नही होता।