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[ ★ जैन निवन्ध रत्नावली भाग २
अर्थ - वीर, अरिष्टनेमि, पार्श्व, मल्लि और वासुपूज्य इन पच तीर्थकरोको छोड़कर बाकी तीर्थंकर राजा हो दीक्षा ली । और उक्त पाचो ने राज्याभिषेकको नही चाहते हुए कुमारावस्था मे ही दीक्षा ली।
पाठकोको यह स्मरण रहे कि इसी आवश्यक सूत्रमें महावीर जिनका विवाहही नही उनके सतान तकका उल्लेख है ।
इसप्रकार लेखकने पउमचरियको दिगम्बर ग्रन्थ सावित करनेके लिये जो-जो दलीले दी वे सब नि सार और अकिचित्कर है ।
पद्मपुराणकी प्रामाणिकता मे संदेह
रविषेणके पद्मचरितमे कितना ही कथन ऐसा भी है जो दिगम्बर मान्यता के विरुद्ध पडता है । और वह पउमचरिय का अनुसरण करते हुये किसी तरह उसमे प्रविष्ट होगया जान होगया पडता है । जैसे
मेरुको कपित करनेसे महावीर नाम होना X ( खण्ड १ ष्ठ १५) विद्याधर वशकी उत्पत्ति नमिविनमिसे बताना + (ख० १ पृ० ६८ ) जबूद्वीप के अधिपति यक्षकी देवियोका, रावणपर मोहित हो उससे सभोगकी इच्छा करना। (खड १ पृष्ठ १६४ ) जिन प्रतिमाके मुकुट धारण, (खड २ पृष्ठ ३०) दो केवलीका
X अशग कविकृत महावीर चरित और श्री धर्मचन्द्रकृत गौतमचरितमे भी ऐमा उल्लेख है वह पद्मचरित परसे लिया गया ज्ञात होता है। तथा इसकी भी गणना दिगम्बर श्वेतावर के ८४ अन्तरोमे है । + क्या पहिले विद्याधर नही थे ।