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क्या पउमचरिय दिगम्बर ग्रन्थ है ]
[ २७७ यह है कि-दोनो ही ग्रथोमे सैकडो जगह मुनिवाचक शब्द आये है। किन्तु पद्मचरितमे जहा जातरूप, नग्न, अचेल, पाणिपात्र, गगनांबर, दिग्वास आदि या इन्ही अर्थवाले अन्य नाम आते है वहा पउमचरियमे मुनिके पर्यायवाची ऐसे नाम भूलकर भी न मिलेंगे (उपर्युक्त 'सियवर' शब्दको छोडकर) किन्तु वहा मिलेंगे निर्ग्रन्थ, मुनि, साधु, श्रमण, यति आदि सामान्य शब्द । श्वेतावराम्नायमे जिनकल्पी साधुका स्वरूप नग्न होते भी इतने वडे भारी पुराणमे जिसमे चतुर्थकालकी आदिसे लेकर अन्त तक होने वाली कितनी ही कथाओका समावेश है एक भी साधुको नग्न नही लिखना ग्रन्थकर्ताका नग्नत्वके प्रति अवश्य उपेक्षाभाव जाहिर होता है।
(इसप्रकार जिस पउमरियमे इतनी बातें दिगवर संप्रदायकै विरुद्ध पायी जाती हैं यहातक कि मुनिके वस्त्र और पात्र तक रखना जिसमे प्रमाणित होता है और जिसका कर्ता मुनिके लिये दिगबर शब्द तकका प्रयोग करना नहीं चाहता उसे दिगंबर ग्रथ बतलाना भारी भूलहै । और यह भी नही कह सकते कि 'यह ग्रन्थ उस समय वना है जव जैनधर्ममे दिगवर श्वेतोबर भेद नही हुआ था। फिर भी इतना तो कहा जा सकता है कि- शायद यह ग्रथ उस वक्त का हो जव जैनधर्ममे दिगबर श्वेतावर भेद स्पष्ट तौरपर न होकर उसकी परिस्थिति तैयार होरही हो कोई एक दल नय मार्ग निकालनेकी फिराकमे हो जिसके लिये धार्मिक गयोमे छिपे तौरपर मिलावट भी की
इससे यह ज्ञात होता है कि परामचरिय से कीतिघर के ग्रन्थ का अनुसरण करते हुए भी ग्रथ को किसी श्वेतावर ने बदला है अथवा कीतिघर के प्रथ को बदलकर श्वेतरवर बनाने का प्रयत्न किया है ।