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[ ★ जैन विबन्ध रत्नावली भाग. २
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जारही हो । यह अनुमान इसलिये भी ठीक होसकता है कि पउमचरिय जैसे एक बडे ग्रन्थमे मुनिके वस्त्र पात्रका उल्लेख सिर्फ एक-एक ही मिला है । और वह भी अति सक्षेपसे ।
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यहापर 'खडेलवाल जैन हितेच्छु' के उस लेखपर विचार करना भी आवश्यक प्रतीत होता है, जिसमे पउमचरियको farar ग्रन्थ सिद्ध करनेका उद्योग किया गया था। जिसका कि जिकर ऊपर किया गया है । वह लेख जिस अकमे मैंने पढा था उसमे अपूर्ण था, आगेके अकोमें पूरा निकला होगा किन्तु वे मेरे देखने मे नही आये । अत उक्त लेखाशमे जो लिखा था उसीपर मैं यहाँ विचार करताहू |
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( उस लेख मे लिखा था कि - " पउमचरियमे महावीर जिनका गर्भापहरण व उनका विवाह नही पाया जाता और केवलीके उपसर्गका अभाव भी उसमे निरूपण किया है इससे वह दिगम्बर ग्रन्थ है ।”)
बेशक में यह मानता हूँ कि पउमचरिय के दूसरे पर्वमे जी महावीर स्वामीका चरित्र लिखा है, उसमे महावीरका माता त्रिशलाके गर्भमे आना बताया गया है व विवाहका कथन भी नही है । जिसका उत्तर यह भी होसकता है कि कथन सक्षेप होनेके कारण वैसा न लिखा गया हो। क्योकि यहां खासतौर से महावीरका चरित्र तो कहना ही न था जो सिलसिलेवार पूरा वर्णन करें। यहा तो कथाकी उत्थानिकाके तौरपर मामूली कयन करना था । अथवा सभव है कि गर्भापहरणकी कल्पना श्वेताबर ग्रन्थकारोकी पीछेकी हो । केवलोके उपसर्गका अभाव इसीमे क्या अन्य श्वेताम्बर ग्रन्थो मे भी पाया जाता है । वीर जिनके केवली अवस्थामे उपसर्गका होना जो श्वेताम्बर आगम मे पाया