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[ * जैन निवन्ध रत्नावली भाग २
उपाश्रयमे लेजाकर जीमना ही उनके पात्र रखनेका निश्चित सुवूत है।
यही कथा श्वेतांवर जैन रामायण x मे भी इसी तरह पाई जाती है। उसके अनुवादको यहाँ मे ज्योका त्यो दे देता हूँ
"एकबार वे मुनि पारणा करनेके लिये अयोध्यामे गये । यहा अहंदत्त सेठके घर भिक्षाकै लिये गये । सेठने अवज्ञाके साथ उनकी वदना की और मनमे सोचा कि ये कैसे साधु हैं जो वर्षाऋतुमे भी विहार करते है मैं इनसे कारण पूछू ? नहीं। ऐसे पाखडियोसे बात करना वृथा है सेठकी स्त्रीने उनको आहारपानी दिया। वे आहारपानी लेकर धु ति नामा आचार्य के उपाश्रयमे गये। छ ति आचार्यने उनको आसान दिया उसी पर बैठकर उन्होंने पारणा किया।" पृष्ठ ३८७
पाठक मोचते होंगे कि इस जगह पद्मचरितमे कंसा कथन है ? पदमचरितमे और तो सब ऐसा ही कथन है किन्तु उसमे चारण मुनियोका'छु ति भट्टारकके यहा आकर भोजन जीमनेका कथन नहीं है।
इसके अलावा एक बात और भी विचारणीय है और वह
x हेमचन्द्राचार्यकृत 'त्रिषष्ठिशलाका पुरुष चरित्र' के सम्म पर्वमे जो राम रावणकी कथा है उसीका हिन्दी अनुवाद पन्थ भण्डार, मटूगा, बबई ने जैन रामायणके नामसे छपाया है । अनुवादक हैं कृष्णलालजी वर्मा 'प्रेम' । ग्रथ वडासा है जिसमे १० सर्म हैं। कथा पउम परिय और पद्मचरितसे अधिकाशमे मिलती हुई हैं, कही २ थोडा बहुत फर्क भी है।