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२७४ ] [* जैन निबन्ध रत्नावली भाग २ रखनेका आमास पउमरियमे अवश्य पाया जाता है जो इस प्रकार है
पउमचरिय पर्व २२ मे लिखा है कि-'मांस भक्षी राजा सोदासको राज्यच्युत कर निकाल दिया तो वह घूमता हुआ दक्षिण देशमे श्वेत वस्त्रधारी मुनिको पाकर उनसे श्रावक दीक्षा ली। ग्रन्थके पद्य इस प्रकार है
पेच्छइ परिब्भमंतो दाहिणदेसे लियंवरं पणओ। तस्स सगासे धम्म सुणिऊण तो समादत्तो ॥७॥ सुणिऊण वयणमे यं मुणिवरविहियं भएण दु.खाणं । होउं पसन्नहियओ सोदासो सावओ जाओ ॥६०।।
इसमें साफ तौरपर मुनिके लिये सियबर शब्द है जो सितांबर यानी सफेद कपडेका वाचक है। पद्मचरितमे इस जगह वस्त्राश्रय रहित मुनि लिखा है । जैसे
दक्षिणापथमासाद्य प्राप्यानंबरसंश्रयं । श्रुत्वा धर्म बभूवासावणुव्रतधरो महान् ॥१४॥
यह तो हुआ मुनिके वस्त्रविधान, अब पात्र रखनेका विधान सुनिये-पर्व ८६
अह अन्नया कयाई साहू मज्झण्हदेसयालम्मि । उप्पइय नहयलेणं साएयपुरि गया सन्वे ॥११॥
पर्व २२ गाथा १ "अह ततो किनधरो मुणिवसभो मलविलित्त सबगो" रेखाकित से दि.त्व सिद्धि होती है ।