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[ ★ जैन निबन्ध रत्नावली भाग २
इच्छा विना कैसे डग भरे अर कैसे उठे बैठे ? ताका उत्तर(भगवान् के इच्छा ना ही यह तो सत्य है परन्तु भगवान् के शरीरादि वा चार अघातिया कर्म बैठा है ताका निमित्त करि मन वचन काय योग पाइये है । तासो ही भगवान् के मनका प्रदेशा का चचलपना वा वाणी का खिरना, वा शरीर का उठना बैठना वा डग भरना सभव है, चामे दोष नाहीं । जायगा - जायगा ग्रन्थ विषे कहा है ।' अन्तिम अश -
'ऐसे बिहारकर सहित समवशरण का वर्णन सम्पूर्ण ।)
इति श्री त्रिलोकसार जी श्री नेमीचन्द्र आचार्य कृत मूल गाथा ताकी टीका संस्कृत का कर्त्ता आचार्य ताकी भाषा टीका टोडरमलजी कृत सम्पूर्णम् ।'
इस प्रकार पं० टोडरमल्लजीसाब की यह भी एक स्वतंत्र कृति मालूम पडती हैं । मुद्रित त्रिलोकसार के साथ इसके प्रकाशित न होने से लोग उनकी इस कृति को भूल बैठे है ।