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प० टोडरमेलजी का जन्मकाल ... ] [ २६१ लिखित त्रिलोकसार की प्रतियो मे उनके साथ लगी हुई उपलब्ध होती है । न मालूम मुद्रित त्रिलोकसार मे वह कैसे छूट गई है ?
समवशरण का यह वर्णन हस्तलिखित पत्रो अर्थात १८ पृष्ठो मे किया गया है। उसका आदि भाग ऐसा है -
'बहुरि अठ आगे धर्मसग्रह श्रावकाचार वा आदि पुराण वा हरिवश पुराण वा त्रिलोकप्रज्ञप्ति, या के अनुसार समोशरण का वर्णन करिये हैं सो हे भव्य तू जाणि ।
दोहाअशरण शरण जिनेश को समवशरण शुभ थान ।
ताको वर्णन जानि तुम पावहु चैन सुजान ।। बीच का कुछ अश
बहुरि जिस प्रकार यहु अवसर्पिणीकाल विषै तीर्थ करनि के घटता क्रम लिये वर्णन किया तसे उत्सर्पिणीकाल विष बधता क्रम जानना । बहुरि विदेह क्षेत्र विष प्रथम तीर्थकरवत् जानना। ऐसे समवशरण विर्षे रचना वा प्रमाण वर्णन त्रिलोक प्रज्ञप्ति, धर्मसंग्रह, समवशरण स्तोत्रादिक की अपेक्षा लिखा है। बहुरि कोई रचना वा प्रमाण का वर्णन केई आचार्य अन्य प्रकार कहे है। जैसे कोई सर्व तीर्थकरनि के समवशरण भूमि का प्रमाण बारह योजन ही कहे हैं । अर केई प्रसाद भूमि की रचना न कहे है। इत्यादि रचना प्रमाण विप विशेप है सो हमारी बुद्धि सत्य असत्य निर्धार करने की नाही ताते केवलो देख्या है तसे प्रमाण है।'
'कोई ऐसा जानेगा कि भगवान के तो इच्छा नाही ।
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