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[ * जैन निवन्ध रत्नावली भाग २
था। अत वे भी प टोडरमलजी के वक्त मे ही हुये थे इसीसे उनकी मृत्यु घटना की उनको पूरी जानकारी थी। बुद्धि विलास मे उन्होने इस घटना का वर्णन "अथ कलिकाल दोपकरि उपद्रव वर्णन" ऐसा शीर्षक देकर हिन्दी छन्दो मे किया है। (पृष्ठ १५१) उनके कथनानुमार माधव सिंह जी के वक्त में जयपुर और उसके आस-पास वि० स० १८१८ से लेकर १८२६ तक के समय मे दि. जैनो पर तीन वार घोर उपद्रव हुये है। वि० स० १८१८ मे राजा माधवसिंहजी ने एक श्याम नाम के तिवाडी ब्राह्मण का राजगुरु के पद पर स्थापन किया था। अत उसीने जैनो पर उपद्रव किया, जिसमे अनेक जैन मन्दिगें का विध्वस किया गया। यह जैनो पर प्रथम उपद्रव था। उसका वृत्तात इस प्रकार दिया हैअमलराज को जैनी जहाँ, नाम न ले जिनमत को तहाँ ।। अवावति (आमेर) मे एक श्याम प्रभु के देहुरे। रही धर्म की टेक बच्यो सु जान्यो चमत्कृत ॥१२६४॥ कोऊ आधो कोऊ सारो, बच्यो जहाँ छत्री रखवारो। काहू मे शिवमूरति धर दी, ऐसी मची श्याम की गरदी ॥१२६।।
यह विध्वंस तीला अधिक समय तक नहीं चल सकी। अकस्मात् उस राजगुरु श्याम तिवाडी पर राजा ने कुपित होकर उसे देश से निकाल दिया । और राजाज्ञा से जनायतनो की क्षति पूर्ति होकर पूर्ववत् पून जैनी लोग अधिकाधिक धर्मोत्सव करने लग गये । उसीके परिणाम स्वरूप वि० स० १८२१ मे जयपुर में
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• यह ग्रन्थ "राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान जोधपुर" मे प्रकाशित हुमा है । मूल्य ३) रु० ७५ नये पैसो मे वही से मिलता है।