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प० टोडरमलजी का जन्मकाल "" ]
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इन्द्रध्वज पूजा का ऐसा महान उत्सव किया गया कि जिसमे ६४ गज का लम्बा चौडा तो केवल एक चबूतरा ही मडल रचना के अर्थ बनाया गया था। राज्य का भी तब उस काम मे पूरा सहयोग था। ऐसा ब्र० रायमल्लजी की लिखी उस उत्सव की पत्रिका से जाना जाता है । (जनियों के ये समारोह तत्कालीन ब्राह्मण समाज को सहन नहीं हो रहे थे। इसलिये उनकी तरफ से जैनियो के विरुद्ध एक षड्यन्त्र रचा गया, जिसमे ब्राह्मणो ने अपनी शिवमूर्ति उठाने का इल्जाम जैनो पर लगाकर राजा को जैनो से विमुख कर दिया और गजा ने सख्त नाराज होकर जैनो की पकडाधकडी की। तथा उनके प्रसिद्ध प० टोडरमलजी को इस काम मे अगुआ समझ कर उनकी हत्या करवा दी । यह जैनियो पर रोमाचकारी दूसरा उपद्रव था) तदनन्तर फिर जैसे तैसे जैनी लोग रथयात्रा के जलूस निकाल निकालकर नाचने कूदने लग गये तो उससे चिढकर अब के हजारो ब्राह्मणो ने मिलकर झूठमूठ ही शिवमूर्ति उठाने का दोष जैनो पर मढ कर बिना राजा को सूचित किये स्वय ही जैन मन्दिरो को लूटा और वहाँ की मूर्तियों का विध्वस किया। जयपुर मे जनो पर यह तीसरा उपद्रव वि० स० १८२६ मे हुआ था। इस उपद्रव का हाल “बुद्धि विलास" मे निम्न प्रकार लिखा है
फुनि भई छब्बीसा के माल, मिले सकलद्विज लघु रु विशाल । सवनि मतो यह पक्को कियो , शिव उठान फुनि दूषन दियो ।।१३०७।। द्विजन आदि बहु मिले हजार , बिना हुकम पाये दरबार ।