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[ * जैन निवन्ध रत्नावली भाग २
आहार, औषध, शास्त्र और अभय ऐसे ४ दान लिखे हैं। स्वामी समतभद्राचार्य ने शास्त्रदान-अभयदान के स्थान मे उपकरणदानवसतिका दान लिखा है । शास्त्र ज्ञानोपकरण है अत उपकरण दान मे शास्त्रदान आ जाता है। पीछी सयमोपकरण है उसका अतर्भाव अभयदान मे हो सकता है । वसति का दान भी अभयदान ही है। उसके अतर्गत जिनालय, धर्मशाला आदि भी आ सकते है । ज्ञानदान की अपेक्षा उपकरण दान का कुछ अधिक व्यापक क्षेत्र है । कमडलु. (जलपात्र) पूजा के उपकरण, जाप करने की माला, प्रातिहार्य, मंगलद्रव्य, पाटा, चौकी, मेज, चदोवा, विछायत आदि पदार्थों के दान का अ तर्भाव उपकरण दान मे ही हो सकता है । जघन्य-मध्यम पात्रो को वस्त्रादि देना भी उपकरण दान मे ही शुमार किया जा सकता है, क्योकिदानादि से वैयावृत्य केवल उत्तम पात्रमुनियो की हो' नहीं की जाती है किन्तु अवरित सम्यग्दृष्टि और देशव्रती श्रावको की भी की जाती है जोकि जघन्य और मध्यम पात्र माने जाते है। साधारणजनो और दीनजनो के लिए उपकार व करुणा बुद्धि से प्याऊ, औषधालय, अनाथालय, सदावत आदि भी दान के क्षेत्र हैं।
३. तीसरी सामायिक प्रतिमा :
सामायिक मे सामायिक दंडक व चतुर्विशतिस्तव के पाठ बोलने के साथ-साथ तीन-तीन आवों का चार बार करना, चार प्रणाम करना, ऊर्ध्व कायोत्सर्ग और २ उपवेशन इत्यादि अनुष्ठान किया जाता है जिसकी विशेष विधि शास्त्री से समझनी चाहिये । वह सामायिक पहले शिक्षाव्रती मे दूसरी प्रतिमा के स्वरूप वर्णन मे कह आये हैं वही यहा तीसरी प्रतिमा