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★ जैन निबन्ध रत्नावली भाग २
और इत्वरिकागमन ये ५ ब्रह्मचर्याणुव्रत के अतिचार है जो इस प्रकार है
( १ ) अपने कुटुम्ब से भिन्न गैरो का विवाह करना अन्य विवाहकरण अतिचार होता है ।
(२) काम - सेवन के अगो को छोड अन्य अगो मे या अन्य अगो से काम-क्रीडा करना, जैसे हस्त- गुदा मैथुनादि, वह अनग क्रीडा अतिचार है |
(३) काय की अश्लील चेष्टा व भड वचन बोलना विटत्व नाम अतिचार है |
(४) कामवासना की तीव्रना होना विपुलतृष्णा, अतिचार है । गर्भवती, रजस्वला, प्रसूतियुक्त रोगिणी, बालिका, वृट्टा, ऐसी अपनी स्त्री हो उसका भी सेवन इस अतिचार मे शामिल है ।
(५) व्यभिचारिणी स्त्री से लेन-देन, हसी विनोद करना, उसके यहा आवागमन रखना इत्वरिकागमन अतिचार है । उसका सेवन करना तो अनाचार है ।
५ परिग्रह - परिमाण व्रत
धन-धान्यादि १० प्रकार के परिग्रहो का परिमाण करके उससे अधिक मे वांछा नही रखना, इसे परिग्रह परिमाण व्रत कहते है ।
अतिवाहन, अतिसंग्रह, अतिविस्मय, अतिलोभ और अतिभारवहन ये परिग्रह-परिमाण व्रत के ५ अतिचार हैं जो इस प्रकार हैं -