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दिगम्बर परम्परा मे श्रावक-धर्म का स्वरूप ]
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सादा की अत्यन्त प्राप्ति होती जा रही है तो उस धन वृद्धि से भी जीव का क्या प्रयोजन सिद्ध हो सकता है ? एक दिन उस धन को छोड कर जीव को पापाश्रव के कारण नरक जाना पडेगा और वहाँ उसे दारुण दु ख सहने पड़ेंगे।)
प्रतिमा - धारण एक विश्लेषण
१. पहली दार्शनिक प्रतिमा-ऐसा सम्यग्दृष्टि जीवोंजब महा पापो का त्याग कर देता है तो उसके श्रावक की पहिली प्रतिमा होती है। पांच उदु वर फल और मद्य मांस, मधु, इनका सेवन आठ महापाप कहलाते हैं, इनका वह त्याग कर देता है। इन आठो का त्याग करना श्रावक के ८ मूलगुण कहलाते हैं। बड, पीपल, ऊमर, कठूमर, और पाकर इन पांचो के फलो को उदु बर फल कहते है। इन फलो मे चलते-फिरते बहुत से त्रस जीव होते हैं। इनका सेवन महापाप माना जाता है। अन्य भी मोटे पाप वह छोड देता है जैसे पानी को वह वस्त्र से छानकर काम मे लेता है क्योकि जल मे अगणित ऐसे सूक्ष्म त्रस जीव होते हैं कि जो हमको आँखो से दिखाई नहीं देते है। वह रात्रि भोजन भी नही करता है। महापाप रूप सात व्यसनो का वह सेवन नहीं करता है। जुआ, मांस, मदिरा, वेश्या, शिकार, चोरी और परस्त्री ये सात व्यसनो के नाम हैं। सम्यग्दृष्टि पुरुष भगवान जिनेन्द्रदेव का अनन्य भक्त होता है। इसलिये उसके इस प्रतिमा मे नित्य जिनदर्शन करने का नियम होता है।
यह प्रश्न उठ, सकता है कि इस प्रथम प्रतिमा मे वह मद्यमांसादि महापापो का त्याग कर देता है तो क्या वह