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भगवान महावीर तथा अन्य तीर्थंकरों के वंश ] [ २२७
वर्ष १६ पृ० १६१ मे मुनि नथमलजी ने णय से ज्ञात की बजाय 'नाग' लेकर महावीर को नागवशी बताया है । 'भगवान् महावीर' पुस्तक के पृ० २५ पर कामताप्रसादजी ने ज्ञात का समीकरण नाट (नट) जाति से किया है । किसी ने 'ज्ञातृ' का समीकरण 'जयरिया' जाति से किया है । स्वार्थ अर्थ मे 'क' प्रत्यय करके 'णय' से नायक जाति भी ली जा सकती है | परन्तु ये सब समुचित मालूम नही पडते |
धनंजय नाम माला, जयधवला, महापुराण आदि में महावीर को नाथ वशी ही बताया है, और यह नायवश भगवान् ऋषभदेव के वक्त से ही चला आ रहा है, नया नही है । यह सब हम पूर्व मे बता आये हैं । फिर भी इसके लिये नीचे और कुछ प्रमाण प्रस्तुत करते है
घवला पुस्तक १ पृ ११२ मे कुछ 'उक्त च' गाथायें देते हुए १२ शो के नाम बताये है उसमे १२ वा गश दिया है"बारसमो णाहनसो दु" । उक्त धवला पुस्तक १ के पृष्ठ ६६ तथा १०१ में छठे अग का नाम- "णाहधम्मकहा" ( नाथ धर्म कथा ) दिया है ( जबकि तत्वार्थ सूत्र की सर्वार्थसिद्धि राजवार्तिक आदि टीकाओ में अध्याय १ सूत्र २० में तथा हरिवंश पुराण आदि में छठे अंग का नाम ज्ञात धर्म कथाग दिया है) गोम्मटसार जीवकाड गाथा ३५७ मे भी गाहधम्मकहाग (नाथधर्म कथाँग) नाम ही दिया है ।
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तिलोयपण्णत्ती अ ४ गाथा ६६० में महावीर के दीक्षावन का नाम णाधवन=नाथवन दिया है। उत्तरपुराण (गुणभद्रकृत ) पर्व ७४ श्लोक ३०२ मे भी ऐसा ही लिखा है- "नाथखडवन