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२२८ ] [ * जैन निबन्ध रत्नावली भीग २ प्राप्य"। अशगकृत महावीर चरित्र सर्ग १७ श्लोक ११३ मे. "भगवान् वनमेत्य नागखड लिखा है। शायद यहाँ 'नाग' की जगह 'नाथ' हो। दामनदि ने पुराणसार संग्रह के वर्धमान चरित सर्ग ४ मे ज्ञात खडमवाप स. ॥३६॥ लिखा है जिससे ज्ञात खड नाम सूचित होता है ।
इससे एक बात यह फलित होती है कि महावीर के नश का नाम और छठे अग का नाम तथा महावीर के दीक्षावन का नाम सब एक ही है । मूलत. प्राकृत मे णाह, णाध शब्द रहा है जिसका संस्कृत रूप नाथ बना है। किसी ने णाह की बजाय णाय माना है जिससे सस्कृत मे जात और बातृ रूप बने हैं। किन्तु है ये सब एक।
योगियो मे नाथ और सिद्ध सम्प्रदाय प्रसिद्ध हैं इनमे पारस नाथी और नेमिनाथी दो शाखाये भी है। हो सकता है. नाय वश से इनका सवध रहा हो।
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卐 बौद्ध ग्रन्थों मे जो सर्वत्र महावीर के लिए सिर्फ एक नाम- 'णिग्गठ पाथ पुत्र' ही आता है इस मे भी स्पष्ट रूप से महावीर को नाथ पुष ही बताया है इस से भी महावीर का वश 'नाथ' ही प्रमाणित होता है।