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भगवान महावीर तथा अन्य तीर्थंकरो के वंश ]
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जयनाम माला, उत्तरपुराण और प्रतिष्ठासारोद्धार के अवतरणो मे भगवान् महावीर के वश का नाम नाथवश बताया गया है तथा जयधबला टीका प्रथमभाग के पृ० ७८ पर भी "कुंडपुर पुरवरिस्सर सिद्धत्य नरवत्तियस्सणाह कुले" गाथा मे महावीर के पिता राजा सिद्धार्थ की जाह (नाथ) वशी बताया है ।
किंतु अकलक ने राजवार्तिक मे तत्वार्थसूत्र के "उच्चैर्नीचैश्च" सूत्र की व्याख्या में महावीर के कुल का नाम " ज्ञाति" दिया है । यथा
"लोकपूजितेषु कुलेषु प्रथित माहात्म्येषु इक्ष्वाक् प्रकुरुहरिज्ञाति प्रभृतिषु जन्म यस्योदयाद् भवति तदुच्चगोत्रम - वसेयम् ।"
इसमे तीर्थकरो के इक्ष्वाकु, उग्र, कुरु, हरि और ज्ञाति ऐसे पाचो ही नशो के नाम लिख दिये हैं ।
अशगकवि ने महावीर चरित के सर्ग १७ श्लो० २१ मे यो " ज्ञातिवशममलेन्दु” वाक्य देकर राजा सिद्धार्थ के वश को " ज्ञाति" नाम से लिखा है तथा इसी सर्ग के श्लो० " ज्ञाति कुलामलाबरेन्दु” पाठ मे भी महावीर के उल्लेख 'ज्ञाति' शब्द से किया है ।
१२७ मे कुल का
चारित्र भक्ति पाठ में आये श्रीमज्ज्ञातिकुलेंदुना पद मे भी महावीर का कुल 'ज्ञाति' लिखा है । यद्यपि भक्तिनाठो को छपी पुस्तक में ज्ञाति के स्थान मे ज्ञात शब्द छपा है, परन्तु इसकी प्रभाचद्रकृत टीका मे ज्ञाति शब्द माना है । इससे मालूम होता है कि उनके सामने ज्ञाति पाठ था। हालाकि उनने यहा