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२२४ ] उल्लेख किया है । (१)
[ ★ जैन निवन्ध रत्नावली भाग २
उत्तरपुराण पर्व ७३ ग्लो० ६५ में पार्श्वनाथ का उग्रवश लिखा है और उसी के पर्व ७५ श्नो० ८ में भगवान् महावीर के पिता सिद्धार्थ का वश नाथवश लिखा है। स्वामी समन्तभद्रं ने स्वयम् स्तोत्र के श्लोक १३५ मे पार्श्व नाथ का कुल उग्र बताया है- " समग्रधीरून कुलाबराशुमान्" ऋषभ का कुल श्लोक ३ मे इध्वाकु और नेमि का वंश श्लोक १२१ मे 'हरि' बताया है ।
वरागचरित मर्ग २७ ग्लो०८६ मे लिखा है कि- "चार तोर्घकर कुरुवंशी, दो हरिवणी एक उग्रवंशी, एक नाथवणी और शेप १६ इटवाकुवंशी हुये हैं ।" त्रिकोल प्रज्ञप्ति मे तीन तीर्थंकरो को कुरुवंशी लिखे है । यहां चार लिखे हैं । शायद यहा चौथे शातिनाथ को कुरुवंशी बताया हो ।
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धनजयनाम माना श्लो०
११५ मे महावीर का नाथवंश और काश्यप गोत्र लिखा है। इसके अमर कीर्तिकृत भाष्य में " चत्वार कुरुव शजा...." यह उक्तच पद्य दिया है। इसमे लिखा है कि - " धर्मनाथ आदि ४ तीर्थंकर कुरुवंश मे, नेमि मुनि सुव्रत हरिवश मे, महावीर नाथवंश में और शेष १७ तीर्थकर इक्ष्वाकुवश मे उत्पन्न हुये है ।" ऊपर पार्श्वनाथ कॉ उग्रवश लिखा है | यहा उनका इक्ष्वाकुवंश लिखा है । --
ऊपर इस लेख मे त्रिलोकप्रज्ञप्ति वरांगचरित, धन
(१) शुभचन्द्र कृत पाडव पुराण सर्ग २ श्लोक १६४ में भ प्रायः यही कथन है |