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कात व्याकरण के निर्माता कौन है ]
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अपने सिर पर रक्ख । इस तरह दोनो प्रतिज्ञा करके अपने घर को चले गये । शर्ववर्मा को अपनी प्रतिज्ञा का निर्वाह होना दुस्तर दिखने लगा और पश्चात्ताप सहित अपना वृत्तात अपनी 3 स्त्री को कहा। तब वह बोली- हे स्वामिन ऐसे सक्ट मे सिवाय "स्वामिकुमार" की आराधना के और कोई पार नही लगा सकता । स्त्री की बात को ठीक समझ कर शर्ववर्मा प्रभात ही स्वामिकुमार के पास जा, वहा निराहार मौन धारण कर और अपने शरीर को न गिन कर ऐसा तप किया, कि जिससे प्रमन्न हो कर भगवान् स्वामिकुमार ने उनका मनोरथ पूर्ण किया । साक्षात् स्वामिकुमार ने उन्हे दर्शन दिये और उनके मुख मे सरस्वती का प्रवेश हुआ । वाद्र मे भगवान् स्वाभिकुमार छहो मुखो से "सिद्धो वर्ण समाम्नाय " यह सूत्र बोले । जिसे सुन कर शर्ववर्मा ने चपलता से इसके आगे का सूत्र बोल दिया । तव स्वामिकुमार ने कहा - यदि तुम बीच मे न वोलते तो यह शास्त्र पाणिनीय शास्त्र से भी बढ कर होता । अव छोटा होने के कारण इसका "कातन्त्र" नाम होगा और कलापी ( मेरे वाहन ) के नाम से इसका अपर नाम "कालापक" भी होगा ।"
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इस कथा में शर्ववर्मा को स्वा कुमार कहिये कार्तिकेय नाम के अजैन देव के उपासक ही नहीं वतलाया गया है बल्कि ग्रन्थ का उद्गम कार्तिकेय ही से हुआ बतलाया गया है । और इसी अभिप्राय को लेकर ग्रन्थके "कालापक" व "कौमार" नामो को सृष्टि हई बतलाई गई है। इससे यह ग्रन्थ साफ तौर पर एक अजैन की कृति सिद्ध होता है । साथ ही इस ग्रन्थ का प्राचीनत्व भी सिद्ध होता है। क्योकि कथा मे इसे सातवाहन राजा को सिखाने के अर्थ बनाया गया बतलाया गया है ।