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जिनवाणी को को भ्रमात्मक लेखोंसे बचाइये
अहा । परमपावनी जिनेन्द्र की वाणी न होती तो अनादिकाल से भवन मे तापित प्राणियों का उद्धार कैसे होता ? इस जगत मे यथार्थ मार्ग दिखाने वाले हितकारी अगर कोई है तो ये वीतराग देवके वचन ही हैं । जैन ग्रन्थो का विवेचन किसी पाखडी कपाय कलुपित क्षुद्र बुद्धि आत्माओ द्वारा नही हुआ है किंतु उसकी मूल रचना निर्दोषी आगमाधिपति सर्वज्ञ द्वारा आविर्भूत हुई है । यही कारण है जो उसके कथन मे आज तक कोई किसी प्रकार की अयथार्थता दिखलाने मे कृतकार्य नही हो सका है। प्रस्तुत उसकी जितनी ही जाच पडताल की जाती है वह असली सुवर्ण की तरह अधिकाधिक उज्ज्वल दिखलाई देने लगता है ।
किन्तु हमे लिखते वडा ही दुख होता है कि वही जगदुद्धारकर्त्री पवित्र जिनवाणी आज हमारे ही पडितो द्वारा विकृत की जा रही है । जिसका कुछ पता आपको आगे इसी लेख मे मिलेगा और यह देखकर और भी अधिक खेद होता है कि आजतक उसके प्रतिबंध का कोई उपाय समाज की ओर से नही किया गया है । बल्कि समाज के किसी भी व्यक्ति ने इस