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आयिकाओ का केशलोच ]
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लोकापवाद को पैदा करने वाली प्रक्रियाओ का नियंत्रण कर जिनेन्द्र के पवित्र मार्ग को भ्रष्ट विकृत होने से बचाना चाहिए। यही सच्ची जिनभक्ति है ।
१८ हजार शील के भेदो को धारण करने वाले साधु परमेष्ठी के लिये उपरोक्त क्रिया किसी तरह शोभास्पद नही । " छहढाला " मे लिखा है - " अठदस सहस विधि शीलधर चिद्ब्रह्म मे नित रमि रहे ||१|| छठीढाल ।