________________
१५६ ]
[ * जैन निवन्ध रत्नावली भाग २
आदि मे बाधा आती है । अत उनकी छूट रहती है । तथा यथाशक्य पुरुप जाति से सपर्क नहीं रखना-उससे दूर रहने का ध्यान रखना। तदर्थ आयिकायें दीक्षा भी किसी मुनि से नहीं लेती हैं। आयिकाओ की किसी गुराणी से लेती हैं। ऐसे कई उल्लेख जैन कथान थो मे आते है। उनके कुछ उदाहरण हम यहा जिनसेनगुणभद्र कृत महापुराण के देते हैं ।
(१) ललिताग के जीव राजा वामव ने अरिंजय मुनि से दीक्षा ली। उसकी रानी प्रभावतीने तव ही पद्मावती आयिका से दीक्षा ली।
(२) जयकुमार को गनी सुलोचना ने ब्राह्मी आर्यिका से दीक्षा ली।
(३) सजयत मुनि की कथामे राजा सूर्यावर्त ने मुनि चद्रमुनि से दीक्षा ली, तब ही उसकी राणी यशोधरा ने गुणवती आर्यिका से दीक्षा ली।
(४) शातिनाथ चरित्र मे वज्रायुध की कथा मे राजा कनकशाति ने विमलप्रभ मुनि से दीक्षा ली। तब ही उसकी दोनो राणियो ने विमलमती आयका से दीक्षा ली।
(५) नेमिनाथ के पूर्व भव मे राजकन्या प्रीति मती की इच्छा प्रतिज्ञानुसार चिंतागति को पति बनाने की थी। ऐसा न होने पर प्रीतिमती ने विवृत्ता आर्यिका से दीक्षा ली । तब ही विरक्त हो चिंतागति ने भी दमवर मुनि से दीक्षा ली।
(६) देवकी के छह पुत्र मुनि होकर उसके घर भिक्षा के लिये आये। उनके पूर्वभवो की कथा मे सेठ भानुदत्त ने अभयनंदि मुनि से दीक्षा ली। तब ही उसकी सेठाती ने जिनदत्ता