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आर्यिकाओं का केशलौंच
हमारे यहा दि० जैन समाज मे मुनियो के केशलोचो के उत्सव होते हैं । जिनमे सैकडो हजारो जैन अजैन लोग एकत्रित होते है । एक मेला सा हो जाता है। ऐसे उत्सवो मे शामिल होने के लिये समाज की ओर से बाहर को आमंत्रण पत्रिकायें भी दी जाती है । इसी प्रकार के उत्सव हमारे यहा आर्यिकाओ के केशलोंचो के भी होते है । यद्यपि इस प्रकार के केशलोचो के उत्सवो का समर्थन किसी जैन आगम से नही होता है । और जन समूह के बीच होने वाले मुनियो के इन केशलोंचो से भले ही कोई खाम हानि नही भी मानी जावे किन्तु आर्यिका का जनसमूह के बीच बैठ कर केशलोच करना तो लौकिक दृष्टि से भी ठीक नही है । आर्यिकायें स्त्री जाति मे होती है, स्त्री जाति मे विशेषतौर पर लज्जा गुण होना यह लोकमर्यादा है। लोकमर्यादा का पालन जैनधर्म मे भी माना गया है । इसीसे जैनधर्म मे मुनि की तरह आर्यिका नग्नलिंग धारण नही कर सकती है । जैनशास्त्रो मे मुनियो की अलोकिकी वृत्ति वृताकर भी कही कुछ काम उनके लिये लोकमर्यादा के भी रक्खे हैं । जैसे अस्पृश्यके स्पर्श होने पर दडकस्तान आदि । इसी प्रकार जैनाचार्यों ने आर्यिकाओ के लिये भी लोकलज्जा का बड़ा ध्यान रक्खा है । 'यहा लज्जा का अर्थ है मुँह और हाथ पैरो के अतिरिक्त शेष अगो को वस्त्र से ढके रखना । मुह व हाथ पैर वस्त्राच्छादित होने से ईर्ष्यासमिति