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[ * जैन निवन्ध रत्नावली भाग २
वैज्ञानिक इतने बेवकूफ नही है जो ऐसी बातो मे विश्वास करने लगें वे तो सदैव इसी जन्म मे ज्योतिष मडल मे पहुँचने मे प्रयत्नशील है। जैन शास्त्रो से भी इसमे कोई वाधा प्रतीत नही होती । जब इस देह से ही वहा पहुँचा जा सकता है तो तापसी बनने की क्या आवश्यकता है ? आपने अपने कथन से मिथ्या दृष्टि (तापसी) धनने का भी समर्थन कर दिया है । इस प्रकार आपका यह सवकथन समुचित नही है । जैन शास्त्रो मे तो यह लिखा है कि - 'मिथ्यादृष्टि तापसी मरकर ज्योतिर्लोक मे पैदा होते हैं आपने उसको घुमाकर उल्टा ही आशय निकाल डाला है जो समीचीन नहीं है।