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________________ क्या चद्र सूर्य का माप छोटे योजतो से है ? ] [ १५३ है और माधुनिक विज्ञान वालो से जो अपील की गई है, उसमे विशेष मार प्रतीत नही होता । "सग्रहणी सूत्र' नाम से एक ग्रथ श्वेतावरो के यहाँ से करीब ४० वर्ष पहिले प्रकाशित हुआ है । हमने 'जैन निवध रत्नावली' के 'उपलब्ध जैन ग्रंथो मे ज्योतिष चक्र की व्यवस्था" शीर्षक निबंध मे इस संग्रहणी सूत्र का उपयोग किया है । इसी श्वेतावरीय ग्रथ की वे प्रतिया हैं । क्षुल्लकजी ने जो अपने लेख में नमूनार्थ २ गाथायें दी है वे इसी श्वे ० o ग्रन्थ की है और उनका नवर भी मुद्रित ग्रंथ मे ठीक वही है जो अल्लकजी ने सूचित किया है । क्षुल्लकजी महाराज ने मूलाचार के द्वितीयभाग मे "सग्रहणी सूत्र' के छपने की बात लिखी है वह भी ठीक नही है । मूलाचार मे तो 'पर्याप्ति संग्रहणी' नाम का अतिम अधिकार है जो भिन्न है । श्री क्षुल्लकजी ने जो यह लिखा है कि " आज का विज्ञान ज्योतिषियो मे उत्पन्न होने के सही तरीके को नही जानता अत राकेट मे बैठ उस ओर पहुचने मे ये विज्ञ संलग्न हैं । ज्योतिष विमान मे पहुँचने के लिए तापम बनना आवश्यक है - कहा भी है- "तावसजा जोइसिया" - गाथा नं० ११।" आपने अच्छा तरीका बताया कि मर कर ज्योतिष मडल मे पहुँचा जाय । यह तो ज्योतिष मडल है अगर स्वर्ग भी हो तो ऐसा कौन समझदार है जो मर कर स्वर्ग देखना चाहेगा ।
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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