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(xvi) श्रद्धा और विचार श्रेणी के पोपक हो । आगम के अनुकूल तत्वी के निर्णय पर उनकी दृष्टि नहीं रहती, बल्कि उसके विपरीत दृष्टिकोण भी अनेको का रहता है और वे इसे बड़ी उपलब्धि मानते हैं कि लेखक प्राचीन आचार्यों के विरुद्ध भी निरकुश होकर लिख सके हैं । इसे वे अपना पक्षपात रहित निर्णय मान लेते हैं और इसी के अनुरूप जनता मे अपना रूप निखारते है।
दूसरी धारा के विद्वान्-आगम के श्रद्धानी होते है उनका विश्वास है कि जिनागम वीतरागी सन्तो की वाणी है जो सर्वज्ञ वीतराग तोर्थंकर महावीर भगवान के द्वारा प्रसूत है अत सत्य तो वही है। भले ही उसके अनुकूल तर्क या प्रमाणो को हम अपनी न्मस्थता से एकत्र न कर सके हो उनकी शक्ति उन प्रमाणो के अन्वेषण मे लगती है, उसे विरुद्ध सिद्ध करने मे नहीं।
स्व० प० मिलाप चन्द जी कटारिया दूसरी धारा के निष्णात विद्वान् थे । आगम की प्ररूपणा को तर्क की कसौटी पर रखकर उसका यथार्थ रूप निखारते थे। यह भी अवश्य है कि उनकी दुधारू तलवार के सामने जिनागम के नाम से लिखे लेख व कपोल कल्पित विचार टुकडे-टुकडे हो जाते थे और जिनागम का यथार्थ रूप सामने आ जाता था।
प्रस्तुत ग्रन्थ मे कटारिया जी के प्राय सही प्रमाणो व तर्को का दर्शन होता है। यह स्वीकार करने योग्य है कि आज कुछ ऐसे ग्रथ भी भण्डारो मे पाये जाते है जो वास्तव मे न तो जिनागम हैं, न उनके लेखक जैनाचार्य हैं जिनके नामो का उल्लेख उन ग्रन्थो मे ग्रथकर्ता के रूप मे लिखा गया है। इसका प्रमाण यह है कि उन आचार्यों के अन्य सुप्रसिद्ध ग्रथो से उनका विषय मेल नहीं खाता, किन्तु उन आचार्यों के ही नही अन्य