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भूमिका
" जैन निबन्ध रत्नावली" का यह द्वितीय भाग है इसका प्रथम भाग सन् १६६६ मे कलकत्ता से प्रकाशित हो चुका है । इस ग्रन्थ ( भाग २ ) के लेखक स्व० प० मिलापचन्द जी कटारिया केकडी ( अजमेर) निवासी है ।
प्रथम भाग की तरह इस भाग मे भी दि० जैन धर्म के अनेक विषयो पर -ग्रन्थोपर - और ग्रन्थकारो पर शोध पूर्ण दृष्टि से प्रकाश डाला गया है । ५० निबन्ध प्रथम भाग में निबद्ध है और ५५ निबन्ध इस भाग में निबद्ध हैं ।
ऐतिहासिक दृष्टि से शोध पूर्ण निबन्धो के लिखने मे दिगम्बर जैन लेखको मे स्व० प० नाथूरामजी "प्रेमी", स्व० प० जुगलकिशोर जी मुख्तार, स्व० सूरजभानजी वकील, स्व० डॉ० ज्योति प्रसाद जी, स्व० डॉ० ए एन उपाध्याय, स्व० डॉ० हीरालालजी, स्व० प० परमानन्दजी शास्त्री आदि अनेक विद्वान इस युग मे हो चुके है । इन सबमे स्व० प० मिलापचन्दजी कटारिया का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है ।
शोध की दिशायें दो धारा मे बहती हैं । प्रथम धारा मे लेखक अपने तर्क और विश्वास को प्रमुख रखकर उपलब्ध प्रमाणो का उपयोग करता है । इससे उसके विचारो का पोषण होता है साथ ही ऐतिहासिक तथ्यों का प्रकाशन भी होता है । इस पद्धति को स्वीकार करने वाले लेखक प्रमाणो के आधार पर तो लिखते हैं पर प्राय उन प्रमाणो का संग्रह करते है जो उनकी