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क्या चन्द्र सूर्य का माप छोटे योजनों से है ?
दिनाक १८ नवम्बर सन् ६७ के वीरवाणी के गताक मे क्षुल्लकजो श्री सिद्धसागरजी का एक लेख "भारतीय अतरिक्ष विज्ञान" नाम से प्रकाशित हुआ है । जिसमे हस्तलिखित सग्रहणीसूत्र " शास्त्र की दो अपूर्ण प्रतियो की चर्चा की गई है । इस सिलसिले मे लिखा है कि ( पृ० ५६ कालम २ ) ।
"चद्र का विमान छोटे योजन की अपेक्षा हर्ष योजन प्रमाण है । अर्थात् ६ मील के आयाम गला है । और सूर्य का विमान x मील प्रमाण है ।
क्षुल्लकजी का ऐसा लिखना उचित नही है । क्योकि ज्योतिष्क विमानो का भी माप जैन शास्त्रो मे लिखा है वह सब as योजनों की अपेक्षा से है। एक छोटा योजन जिसको उत्सेध योजन कहते हैं उससे पांचसौ गुणा एक प्रमाण योजन अर्थात् वडा योजन होता है । अत सूर्य चंद्र की लवाई चौडाई भी बड़े योजन की अपेक्षा से ही समझना चाहिये । अर्थात् आपने योजनाशो को ८ से गुणाकर मील बनाने को लिखा है । जबकि उसकी जगह योजनांशी को चार हजार से गुणाकर मील सख्या लाने