________________
भट्टारक सकलकीर्तिका जन्मकाल ]
[ १४१
तक गुरु के पास पढे इसका अथ यह हुआ कि पद्मनदि स १४५० तक भी जीवित थे । जव स० १४५० तक ही पद्मनदि की उम्र ६४ वर्ष की हो चुकी थी जैसा कि हम ऊपर बता आये हैं तो १४७६ तक उनका जीवित रहना मानने पर तो उनकी उम्र १२० वर्ष तक पहुँच जायेगी जो युक्त नही है । दूसरी बात यह है कि - " भट्टारक सप्रदाय" पुस्तक के पृ० ६७ में विजोलिया का शिला लेख छपा है। जोकि वि० स० १४६५ का उत्कीर्ण है | उसमे हेमकीर्ति यति की प्रशंसा करते हुये लिखा है कि - पद्मनदि के पट ट शिष्य शुभचद्र के ये हेमकीत शिष्य थे । अगर स० १४७६ मे पद्मनदि मौजूद होते तो इस शिला लेख मे स० १४६५ मे ही शुभचन्द्र को पद्मनदिका पट्टवर शिष्य नही लिखते । इसी तरह स० १४६१ में गाधार की गद्दी ( इसका जिक्र ऊपर देखो ) के स्थानातर करने मे पद्मनदि का नाम न लिखकर उनके अन्यतम शिष्य देवेन्द्रकीर्ति का नाम लिखा है । इससे स्पष्ट सिद्ध होता है कि स० १४६५ मे ही नही स० १४६१ मे भी पद्मनन्दि जीवित नही थे। अगर सकलकीर्ति का १८ वर्ष की उम्र में भी दीक्षित होना मान ले तो वह समय भी १४६६ का तो होगा ही तव भी उसकी सगति शिलालेख के कथन से नही बैठेगी।
"सकलकीर्तिनुरास" के अ धार पर सकलकीर्ति का जन्मकाल स १४४३ मानते हैं मगर इस रास के कर्त्ता कौन है ? और वे कब हये ? ऐसा कुछ ज्ञान नही होता है । सकलर्कीति के समकालीन ब्रह्म जिनदास ने तो सकलकीर्ति का कोई रास नही लिखा है । ऐसी हालत मे बिना किसी सवल प्रमाण के नगण्य रास के आधार पर पट्टावलियो को सहसा अप्रमाण कैसे मान लिया जावे ?