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[ ★ जैन निवन्ध रत्नावली भाग २
२४ वर्ष की उम्र मे दीक्षा ली और गुरु के पास रहकर ८ वर्ष तक व्याकरण - काव्य न्याय सिद्धातादि शास्त्रो का अध्ययन किया । चे २२ वर्ष तक नग्न रहे। इनके पगले नोगाम मे स्थापन किये । वि० सं० १४६६ तक वे जीवित रहे ।" यह पन सं० १८०५ का लिखा है ।
ऊपर हम बता आये हैं कि - वि० सं० गुरु पद्मनदि जीवित थे और इन पद्मनदि के कीर्ति ने अपनी २४ वर्ष की वय मे दीक्षा ली व दीक्षा के बाद ८ वर्ष तक उन्ही पद्मनदि के पास मे रहकर उन्होंने शास्त्राध्ययन भी किया । तो इस हिसाब से सक्ल कीर्तिका जन्म समय वि० सं० १४१७ सिद्ध होता है । यह १४१७ का समय भी उम हालत में होगा जब सकल कीति के अध्ययन करते ही गुरु का अनकाल हो गया हो जिससे वे ८ वर्ष तक ही गुरु के पास अध्ययन कर पाये हो । सभव है इसी से उनका अध्ययन काल ८ वर्ष का लिखा हो ।
१४५० तक इनके पास मे सकल
किन्तु कुछ विद्वान् मकलकीर्ति का जन्म समय ०१४४३ का मानते है. वह उचित नही जान पडता । क्योकि वैमा मानने से पद्मनदि के समय के साथ उसकी सगति नही बैठती है । पट्टा वलियो मे पद्मनंदि की गुरु परपराओ और शिष्य परपराओ का जो पटटारोहण कान दिया हुआ है वह ऐसा श्रृखला बद्ध है कि यदि उसकी एक भी कडी गलत हो जाती है तो उसकी अगे की परपस सारी की सारी गडबड मे पड जाती है । इसलिये उसे अमान्य नहीं किया जा सकता है। अगर हम सकलकत का जन्म काल सं० १४४३ का मानकर चले और उन्होने २५ वर्ष की उम्र मे पद्मनदि से दीक्षा ली एव ८ वर्ष