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भट्टारक सकलकीतिका जन्मकाल ] [ १३६ चाहिये । तत्पश्चात् उनके तीन शिप्यो मे से शुभचन्द्र स० १४५० की माघ शुक्ला ५ को दिल्ली में उनके पट्ट पर बैठे। ये ५६ वर्ष तक पट्ट पर रहे। ये भी ब्राह्मण जाति के थे। इन्होने अपनी १६ वर्ष की अवस्था मे दीक्षा ली थी । दीक्षा लेने के २४ वर्ष बाद वे गुरु के पट्ट पर बैठे थे। इन शुभचन्द्र की कुल उम्र ६६ वर्ष की थी।
पद्मनदि के दूसरे शिष्य देवेन्द्रकीति के बाबत "सूरत के मूर्ति लेख संग्रह" नामक गुजराती भाषा की पुस्तक के पृ० ३५ पर ऐसा लिखा है
"दिल्ली मे स्थापित भट्टारको को गद्दी की एक शाखा फिरोजशाह के वक्त मे वि० स० १३८३ मे आमोद के पास गाधार मे स्थापित हुई। तदनतर स० १४६१ मे भट्टारक देवेन्द्रकीर्ति ने उसे वहा से उठाकर सूरत के पास रादेर मे स्थापित की। फिर देवेन्द्रकीति के शिष्य भट्टारक विद्यानदि ने वहा से उठा कर उसी गद्दी की स्थापना सूरत मे की।"
इस लेख से कहा जा सकता है कि पद्मनंदि के विवगत हुये बाद दिल्ली की भट्टारकी गद्दी की जो शाखा गाधार मे थी वहा के भट्टारकी पद पर उनके दूसरे शिष्य देवेन्द्रकीर्ति आसीन हुये हैं।
अब रहे तीसरे शिष्य सकलकीति उनका हाल जैन सिद्धात-भास्कर १३ किरण २ मे प्रकाशित एक ऐतिहासिक पत्र मे निम्न प्रकार लिखा है
"ढूढाड देश मे नेणवे (नणवा) ग्राम में प्रभाचन्द्र के पट्टधर शिष्य श्रीपद्मनदि के पास से सकलकीति ने अपनी