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जैन निवन्ध रत्नावली भाग ३
ऐमा आभास होता है कि ऐतिहासिक पत्रादि मे जो सकलकोति को ५६ वर्ष की अवस्था लिखी है वह ५६ वर्ष का काल दर-अमल मे उनके दीक्षा लेने के बाद का है जिसे गल्ती से उनको मारो उम्र तो ५६ वर्षको समयली गई है। और चूकि सकलफोति का अतकाल म १५६६ मे हआ यह निश्चित्त है ही अतः गम के कर्ता आदि ने ५६ वर्ष का जोड बैठाने के लिये उनका जन्म सं १४४ मे होना लिख दिया है। और इसी तरह ३४ वर्ष की अवस्था मे उनका आचार्य होना लिखा है, उसे भी ५६ का जोड बैठाने का प्रयत्नमात्र रामझना चाहिये । क्योकि वे २२ वर्ष तक नग्न रहे इस कथन की सगति भी तो चंठानी थी।
संभवत: स. १४४३ मे उनका जन्म न मानकर वह समय यदि उनकी दीक्षा का मान लिया जाय और उसके ३४ वर्ष बाद आचार्य होकर २२ वर्ष पर्यन्त नग्न रूप मे रहना मान लिया जाये तो इस विषय की मव आपत्ति दूर हो सकती है। ऐसी सूरत मे उनकी उम्र ८१ वर्ष की माननी होगी।
भाणा है जो लोग उनको कुल उम्र ५६ वर्प को मानते हैं वे म पर पुनः विचार करने का उद्यम करेगे।
इतिहास की मही खोज वे ही लोग कर सकते हैं जो दुराग्रही नहीं होते है और जब तक पूर्ण निर्णय नहीं हो जाता तब तक तटस्थ होकर जैसा भी अनुकल या प्रतिकूल प्रमाणे मिलता जाता है तदनुमार ही नि:संकोच वत्ति से अपने विचारों मे तबदीली करते रहते है।