________________
चातुर्मास योग ।
[
१२३
अमयम होता है। अत वर्षा काल मे एक सौ बीस दिन नक मुनियो का एक स्थान मे रहना यह उत्मर्ग मार्ग है । कारण अपेक्षा से यह अवस्थान १२० दिन से हीनाधिक भी होता है । आषाढ शुक्ला दशमी से लेकर कार्तिक की पूर्णमासी के बाद नीस दिन तक यानी मगसिर शक्ला १५ तक ( ५ मास ५ दिन ) मुनियो का एक स्थान मे रहना उत्कृष्ट काल कहलाता है । महामारी दुभिक्ष के होने पर जव लोग गांव देश को छोड भागने लगे अथवा मुनि संघ के नाश होने का कोई कारण आ उपस्थित हो तो ऐसी हालत में मुनिजन जहाँ वर्षायोग ग्रहण किया है उस स्थान को भी छोड वर्षाकाल मे अन्य स्थान मे जा सकते हैं। यदि न जावें तो उनके रत्नत्रय की विराधना होगी। यह स्थानातर आषाढ की पूर्णमासी से चार दिन बाद तक-श्रावण कृष्णा ४ तक किया जा सकता है । इस अपेक्षा से काल की हीनता समझनी । इस प्रकार टीका मे १० वाँ स्थिति कल्प का व्याख्यान किया है। टिप्पणमे तो दो-दो महीने मे निषद्यका का दर्शन करना दशवा स्थितिकल्प बताया है।
यहाँ यह ध्यान मे रखने की बात है कि-शवे पज्जो नाम के स्थिति कल्प का जो स्वरूप टिप्पण मे बताया है । उमो से मिलता जुलता स्वरूप मूलाचार की टीका मे बताया है। वहा 'निषद्यका की उपासना करना" ऐसा स्वरूप पज्जो स्थिति कल्प का बताया है । जबकि भगवती आराधना की विजयोदया टोका मे वर्षायोग के धारण करने को पज्जो-स्थितिकल्प बताया है । इस तरह भगवती आराधना को टोका और मूलाचार को टोका मे इस विषय मे एक बडा कयन भेद पाया जाता है।
नीचे हम इन सब कथनो का फलितार्थ बताते है -