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[ ★ जैन निबन्ध रत्नावली भाग २
(१) आषाढ शुक्ला १५ से कार्तिक शुक्ला १५ तक वर्षा काल माना जाना है । इन ४ मासीक मुनियो का एक स्थान मे रहना यह एक सामान्य नियम है ।
(२) मूलाचार मे लिखे माम कल्प के अनुसार वर्षा काल के प्रारम्भ से एक मास पूर्व और वर्षा काल की समाप्ति से १ मास बाद तक भी अर्थात् ज्येष्ठ शुक्ला १५ से मगसिर शुक्ला १५ तक मास ६ तक भी मुनिजन लगातार एक स्थान पर रह सकते हैं । इतना समय शास्त्र रचना के लिए उपयुक्त हो सकता है
(३) वर्षा योग की स्थापना का समय आषाढ शुक्ला १४ का है । भगवती आराधना की टोका के अनुसार उसके भी पहिले आषाढ शु० १० तक मुनियों को वर्षा योग ग्रहण करने के अर्थ अपन इष्ट स्थान पर पहुच जाना चाहिए । यदि किसी कारण वश उक्त समय तक न पहुँच सके तो भी श्रावण कृष्णा ४ का उल्लघन तो कदाचित् भी नहीं किया जा सकता है । उल्लवन करने पर प्रायश्चित्त लेना होगा ।
(४) अनगारधर्मामृत मे प० आशाधरजी ने वर्षा योग की समाप्ति की सिर्फ क्रिया विधि ( भक्ति पाठो का पढा जाना) कार्तिक कृ० १४ की रात्रि के पिछले भाग मे करना बताई है । उसके दूसरे ही दिन विहार करना नही बताया है । बल्के उसके
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45 प्रत्येक पच वर्ष मे दो मास बढते हैं अत जिस वर्ष चातुर्मास मे अधिक मास हो उस वर्ष ७ मास तक भी एक स्थान पर स्थिति हो सकती है ।
-- रतनलाल कटारिया