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[ * जैन निवन्ध रत्नावली भाग २ पुत्र की उत्पत्ति होने तक कम से कम एक वर्ष का काल भी मान लिया जावे तो यहाँ तक श्रेणिक की उम्र ३७ वर्ष की होती है शास्त्रो मे रुद्रो के ३ काल माने है-कुमारकाल सयमकाल और असयमकाल । हरिवश पुराण सर्ग ६० में लिखा है कि
वर्षाणि सप्त कोमार्ये विशति सयमेष्टमि. । एकादशस्य रुद्रस्य चतुस्त्रिशदसयमे ॥५४५।।
अर्थ-११ वे रुद्र का कुमारकाल ७ वर्प, मयभकाल २८ वर्ष और अमयमकाल ३४ वर्ष का था।
यह विपय त्रिलोकप्रज्ञप्ति मे भी आया है। उसके चौथे अधिकार की गाथा न० १४६७ इस प्रकार है -
सगवासं कोमारो संजमकालो हवेदि चोत्तीस । अडवीसं भंगकालो एयारसयस्य रुद्दरस ॥१४६७'।
इसमे ११ वे रुद्र का सयमकाल ३४ वर्ष का और असयमकाल २८ वर्ष का बताया है। यह गाथा अशुद्ध मालम पडती है । इसलिये इसका कथन हरिवणपुराण से नहीं मिलता है । इस गाथा में प्रयुक्त 'चोत्तीस' के स्थान मे 'अडवीस' और 'अडवीस' के स्थान मे 'चोत्तीस' पाठ होना चाहिये । जान पडता है किसी प्रतिलिपिकार ने प्रमाद से उलट पलट लिख दिया है।
अब प्रकृत विषय पर आइये-रुद्र ने महावीर पर उपसर्ग किया तो वह ऐसा काम सयमकाल मे तो कर नही सकता है । रुद्र की सयमकाल की अवधि उसकी ३५ वर्ष की उम्र तक मानी गई है जैसा कि ऊपर लिखा गया है इन ३५ वर्षों को श्रेणिक की उक्त ३७ वर्ष की उम्र मे जोडने पर यहाँ तक श्रेणिक की उन्न