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चामुण्डराय का चारित्रसार ]
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१५ तक शीलसप्तक के सिर्फ लक्षण और अतीचार (रा० वा० अ०७ मे देखो इस विषय के सूत्र) चा० सा० पृष्ठ २२-२३ सल्लेखना का लक्षण और अतीचार (रा० चा० अ०७ सू० २२३७) चा० सा० पृ० २४ से २६ तक सोलह कारण भावनायें (रा. वा० अ०६ सूत्र २४) चा० सा० पृष्ठ २७ से ३० तक दशधर्मों का विवेचन (रा. वा० अ६ सू०६ मे बिल्कुल यही है)। फर्क इतना सा है कि यहां पहिले अलग अलग धर्म का स्वरूप बताकर वार्तिक २८ मे दसो ही का विशेष कथन किया है। और चारित्रसार मे इस विशेष कथन को प्रत्येक धर्म के वर्णन के साथ ले लिया है तथा यही पर चारित्रसार मे सत्य के १० भेदो का जो वर्णन है वह (राजवातिक अ० १ सूत्र २०, व ० १३ वे पर से लिया गया है) चा० सा० पृ० ३० समितियो का कथन (रा० वा० अ०६ सू०५) चा० मा० पृ० ३२ से ३७ तक अष्ट शुद्धियों का वर्णन (रा. वा० अ०६ सू०६ वा. १६) चा० मा० पृ० ३७ ३८ चारित्रकथन (रा० वा० अ० ६ सू० १८) चा० सा० पृ० ३६ वाक् मन का कथन (रा० वा० अ० ५ सू० १६ बा० १५ तथा २०) 'चा. सा० पृ. ३६ सरभ-समारभआरम्भ-कृत कारितानुमत के लक्षण (रा० वा० अ० ६ सू० ८) चा० सा० पृ० ४० से ४३ तक पच पापो के लक्षण और उनकी भावनायें (रा. वा० अ०७ मे इस विषय के सूत्र देखो। इसी अध्याय के ६वें सूत्र में जो पच पापो का विशेष कथन है उसे ही चारित्रसार में प्रत्येक पाप के वर्णन मे छाँट लिया है) चा० सा० पृ० ४४ (रा० वा० अ०७ सूत्र १० की व्याख्या) चा० सा० पृष्ठ ४५ से ४७ तक का कथन (रा० वा० अ०६ सू० ४६-४७) चा० सा० पृ० ४८ से ५७ तक बाईस परीषहो का वर्णन (रा० का० अ०६ सूत्र ८ से १७ तक) चा० सा० पृ० ५६ से ६३ तक