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प० टोडरमल जी और शिथिलाचारी साधु ]
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मुनि परवश न होकर भी अहर्निश कितने ही मूलगुणो मे दोष लगाते हैं वे पुलाक मुनि नही माने जा सकते हैं।
आजकल के कतिपय साधुओ के शिथिलाचार का तो अजीब ही हाल है परिताप इस बात का है कि उनको भी मानने पूजने वाले कई भोले जैनी भाई है। यह अन्ध भक्ति महिला वर्ग मे विशेप पाई जाती है। धनादि की लालसा से कुछ सेठ लोग भी इसमें साथ दे रहे है और कतिपय स्वार्थी पण्डित भी हाँ मे हाँ मिला रहे है तथा देखादेखी साधारण जन भी इसी प्रवाह मे वह रहे है। कोई कहता है अमुक माधु बडे करामाती है मन्त्र-जन्त्र से भक्तो के कार्य सिद्ध करते है कुओ का पानी भी मीठा बना देते है। कोई कहते है अमुक साधु भूत भविष्यत् को बाते बता देते है । कोई कहते हैं अमुक साधु के चरणो मे और गले मे साप खेलते हैं। कोई कहते है अमुक साधु अपने तप के प्रभाव से खण्डित मूर्तियो को जोड देते हैं, आदि । किन्तु टन सब मे कोई तथ्य नही ।
मुनियो में जो शिथिलाचार तीव्र गति से बढता जा रहा है उसके कारण जेन धर्म की महान् अप्रभावना हो रही है-यह वडी ही चिन्ता का विषय है। दिगम्बरत्व की जो प्रतिष्ठा आज के पचास साठ वर्ष पहले जैनेतर लोगो के मन मे थो वह आज कहाँ है ? मैं इममे भक्तो की जिम्मेवारी ही ज्यादा समझता हूँ। भक्तो का कर्तव्य है कि वे मूलाचार आदि । मुनियो के आचार-ग्रन्थो को पढे और उनके अनुसार जिनका आचरण ठीक न हो उन्हे मुनि नही माने और उनके शिथिलाचार के विषय मे उन्हे स्पष्ट कहे। जब तक भेष पूजा का