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[ जैन निबन्ध रत्नावली भाग २
व्यवहार दूर नही होगा, तब तक इस रोग का इलाज कभी नहीं होगा । पण्डित टोडरमल जी ने भेष पूजा का जो डटकर विरोध किया था उससे एक क्राति उत्पन्न हुई थी, आज भी वेसी क्राति की जरूरत है । हमे किसी भेषी का निन्दा के भाव से नही अपितु मुनित्व की वस्तुस्थिति को प्रकट करने के लिए निर्भय होकर अपने विचार प्रकट करना चाहिए । इस सम्बन्ध मे जो अपनी जिम्मेवारी को नही समझते वे वहुत बड़ी गलती करते है ।