________________
ऐलक चर्या क्या होनी चाहिए और क्या हो रही है ? ] [ ७५ लिखा है विद्वानो को विचार करके इस विषय मे अपना मत प्रगट करना चाहिये |
हम भी प्रमाण सचित करने का प्रयत्न कर रहे हैं परन्तु अभी तक लेखक के विरोध मे सिवाय रूढि के और कोई प्रमाण नही मिला है। मूलचन्द किशनदास कापडिया सूरत द्वारा सगृहीत प्रकाशित (वीर स० २४४० ) " क्षेपन क्रिया विवरण" पुस्तक के पृष्ठ १३ पर लिखा है - ऐलक पदवीमाँ विशेषता एछे कि - " उभारही ने पाणिपात्रज आहारज करें" किन्तु यह किसी प्रमवश या गलती से लिखा गया है क्योकि इसके लिए कोई प्रमाण या आधार वहाँ नही दिया गया है । यही हालत प० हीरालाल जी शास्त्री की है उन्होने भी श्रावकाचार संग्रह भाग ४ की प्रस्तावना पृष्ठ ६३ मे ऐलक के खड़े भोजन करने की बात लिखी है जो निराधार है ।