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इस प्रकार श्रुतभक्ति का फल स्पष्ट करते हुए कविवर योगीम्बु ने स्पष्ट feer है कि जो परमात्म प्रकाश नामक जिनवाणी का नित्य नाम लेते हैं, उनका मोह दूर हो जाता है और अन्ततोगत्वा वे त्रिभुवन के साथ बन जाते हैं।"
जैनधर्म में भुतज्ञान की अर्चना, पूजा वन्दना और नमस्कार करने से सब दुःखों और कर्मों का क्षय हो जाना उल्लिखित हैं। इतना ही नहीं मतभक्ति के द्वारा व्यक्ति को बोधिलाभ, सुगति गमन, समाधिमरण तथा जिनगुण सम्पदा भी उपलब्ध होती है।" सरस्वती पूजन के फल की चर्चा करते हुए कहा गया है कि इससे केवल ज्ञान की उपलब्धि होती है । फलस्वरूप अनन्तदर्शन और अनन्त वीर्य जैसी अमोघ शक्तियाँ प्राप्त होती हैं।' कविवर खानतराय ने श्रुतिभवित करते हुए स्पष्ट कहा है कि जिस वाणी की कृपा से लोक-परलोक को प्रभुता प्रभावित हुआ करती है । उन जनबंध जिनवाणी को नित्य नमस्कार करना वस्तुतः श्रुतभक्ति है ।
१ जे परमप्प - पयासयहं अणुदिण णाउयति ।
तुट्टइ मोहु तउत्ति तहं तिहुयण णाह हबति ।
- परमात्मप्रकाश, योगीन्दु, सम्पादक - श्री आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्ये, श्री मद्रायचन्द्र जैन ग्रन्थमाला, श्री परमश्रुत प्रभाबक मण्डल, बम्बई, प्रथम संस्करण १६३७, पृष्ठ ३४२ ।
२. सुदत्ति काउस्सग्गो कओ तस्स आलोचेउ अगोवंगपद्दण्णए पाहुडयपरियम्मसुतपढमा णिओगपुव्वगय चूलिया चेव सुत्तत्थथुइ धम्मक हाइय freenri अंधेमि, पूजेसि, वंदामि, णमंसामि, दुक्खक्खओ, कम्मक्खओ बोहिलाहो, सगइ गमण, समाहिमरणं जिणगुण संपत्ति होउ मज्झं । - श्रुतभक्ति, आचार्य कुन्दकुन्द, दशभक्त्यादि संग्रह, सिद्धसेन जैन गोयलीय, अखिल विश्व जैन मिशन, सलाल, सावर कांठा, गुजरात, प्रथम संस्करण बी० नि० सं० २४८१, पृष्ठ १३६ ।
३. एवमभिष्टुबतो मे ज्ञानानि समस्त लोक चक्षूंषि ।
लघु भवताज्ज्ञानद्धि ज्ञानफलं सौरव्यमख्यवनम् ॥
श्रुतभक्ति, गाया ३०, दशभक्त्यादि संग्रह, सिद्धसेन जैन गोयलीय, अखिल विश्व जैन मिशन, सलाल, साबरकांठा, गुजरात, प्रथम संस्करण बी० नि० सं० २४८१, पृष्ठ १३७ ।
४. ओंकार घुनिसार, द्वादशांग बाणी विमल ।
नमो भमित उरधार, ज्ञान करें जा वानी के ज्ञान ते, सूझे लोक धानत जग जयवंत हो, सदा देत हो धोक ॥
जड़ता हरे || आलोक ।
- श्री सरस्वती पूजा, जयमाला, ज्ञानतराय, राजेश नित्य पूजापाठ संग्रहराजेन्द्र मेटिल वक्र्स, अलीगढ़, प्रथम संस्करण १९७६ ई०, पृष्ठ ३६६ ।