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( ४ ) प्राप्ति होती है। इस प्रकार इन सोलह कारणों से जीप तोहार भाम-गोत्र कर्म को बांधते हैं।'
लौकिक जीवन की सफलता उसके अलौकिक पक्ष को प्रभावित किया करती है। जीवन को निष्कंटक तथा सफल बनाने के लिए विवेच्य काव्य में 'समिति' का प्रयोग हुआ है। जैन दर्शन के अनुसार प्राणि-पीड़ा के परिहार के लिए सम्यक् प्रकार से प्रवृत्ति करना समिति कहलाता है।'
संयम-शुद्धि के लिए मिनेन्द्र भगवान ने पांच प्रकार के समिति-भेद किए हैं। यया
(१) ईर्या समिति (२) भाषा समिति (३) एषणा समिति (४) आदान-निक्षेपण समिति (५) प्रतिष्ठापन समिति
ईर्या समिति की व्याख्या करते हुए नियमसार' में स्पष्ट कहा गया है कि जो श्रमण प्रासुक मार्ग पर दिन में चार हाथ प्रमाण आगे देखकर अपने कार्य
१. एही सोलह भावना, सहित धरे व्रत जोय ।
देव इन्द्र नरवंद्य पद, द्यानत शिव पद होय ।। -श्री सोलह कारण पूजा, धानतगय, राजेश नित्य पूजा पाठ संग्रह,
राजेन्द्र मेटल वर्स, अलीगढ, पृष्ठ १७७ । २. महाबन्ध पुस्तक सं० १, प्रकरण संख्या ३४-३५, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन
काशी, प्रथम सस्करण १९५१, पृष्ठांक १६ । ३. प्राणि पीडा परिहारार्थ सम्यगयन समितिः ।
- सर्वार्थ सिद्धि, देवसेनाचार्य, भारतीय ज्ञानपीठ, काशी, प्रथम सस्करण,
१६५५, पृष्ठ ७॥ ४. इरिया-भासा-एसण जा मा आदाण चेव णिकोवो ।
सजम सोहिणि मितेखति जिणा पच समिदी ओ ॥ -कुदकुद प्राभूत संग्रह, कुन्दकुन्दाचार्य, चारित्र अधिकार, जन सस्कृति संरक्षक संत्र, शोलापुर, प्रथर स. १६६०, पृष्टाक ६४ ।