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मिलता है ।" भुत भक्ति के माध्यम से सम्पूर्ण भूत-सम्पदा उपलब्ध होती है। " प्रवचन-मक्ति के चितवन द्वारा परमानन्द की प्राप्ति होती है ।' षट् आवश्यक भावना के चिन्तवन करने से रत्नत्रय का सुफल योग प्राप्त होता है ।" धर्म-प्रभावना करने पर शिव-मार्ग का सम्यक परिचय हो जाता है।* वात्सल्य भावना के चिन्तवन द्वारा तोयंकर पश्वी प्राप्त होती है ।"
after का कहना है कि सोलह भावनाओं का व्रतपूर्वक शुभ चिन्तवन करने पर इन्द्र-नरेन्द्र द्वारा समादर तथा पूजक को अन्ततोगत्वा शिव-पद की
१. जो आचारज भगति करें हैं।
सो निरमल आचार धरे हैं ||
- श्री सोलह कारण पूजा, द्यानतराय, राजेश नित्य पूजापाठ संग्रह पृष्ठ १७७ ।
२. बहु श्रुतवत भगति जो करई ।
सो नर सम्पूरन श्रुति धरई ॥
-श्री सोलह कारण पूजा, द्यानतराय, राजेश नित्य पूजापाठ संग्रह, राजेन्द्र मेटल वर्क्स, अलीगढ़, पृष्ठ १७७ 1
३. प्रवचन भगति करे जो ज्ञाता ।
लहे शान परमानन्द दाता ||
श्री सोलह कारण पूजा, द्यानतराय, राजेश नित्य पूजापाठ संग्रह, पृष्ठ १७६ ।
४. षट् आवश्यककार्य जो साधे ।
सो ही रत्नत्रय आराधे ||
-- श्री सोलह कारण पूजा, धानतराय, राजेश नित्यपूजापाठ संग्रह, पृष्ठ १७७ ।
५. धरम प्रभाव करे जो ज्ञानी ।
सिन शिव मारग रीति पिछानी ||
- श्री सोलह कारण पूजा, यानतराय, राजेश नित्य पूजा पाठ संग्रह, पृष्ठ १७७ ।
६. वत्सल अंग सदा जो ध्यावं ।
सो तीर्थंकर पदवी पार्व ॥
- श्री सोलह कारण पूजा, पानतराय, राजेश नित्य पूजा पाठ संग्रह, पृष्ठ १७७ ।