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संग-भावना का मन्यास करने पर । स्वर्ग-मुक्ति के पर्व सुलभ हो जाते हैं। स्वाम-भावना अति दान देने से मन हपित सपा मग सम्बन झोता है तथा भविष्य सुखी होता है। तप-भावना द्वारा कर्मक्षय हो जाते हैं। साधु-समाधि-भावना का चितवन करने से मि-गग के भोगभोगने का अवसर सुलभ होता है और शिवत्व की प्राप्ति होती है। वैया त्य-भावना के चिन्तवन द्वारा सांसारिकता से मुक्ति मिलती है। अरहन्स-भक्ति भावना द्वारा समस्त कषायों का परिहार हो जाता है। आचार्य-भक्ति के परिणामस्वरूप निर्मल आचार धारण करने का सुअवसर १. जो सवेगभाव विस्तार ।
सुरग-मुकति पद आप निहारं ।। -श्री सोलहकारण पूजा, बानतराय, राजेश नित्यपूजा पाठ संग्रह,
पृष्ठ १७६ । २. दान देय मन हरष विशेषे ।
इह भव जस, पर-भव सुख देखे । -श्री सोलह कारण पूजा, यानतराय, राजेश नित्य नियम पूजापाठ
सग्रह, राजेन्द्र मेटिल वसं, अलीगढ़, १६७६, पृष्ठ १७६ । ३. जो तप तपे खिप अभिलाषा ।
चूरै करम शिखर गुरू भाषा ।। -श्री सोलह कारण पूजा, द्यानतराय, राजेश नित्य पूजा पाठ संग्रह,
राजेन्द्र मेटिल वर्क्स, अलीगढ़, १६७६, पुष्ठ १७६ । ४. साधु-समाधि सदा मन लावै । तिहूं जग भोग भोगि शिव जावै ।। ---श्री सोलह कारण पूजा, धानतराय, राजेश नित्यपूजा पाठ संग्रह, पृष्ठ
१७६ ॥ ५. निशि-दिन वयावृत्ति करैया।
सो निहचे भव नीर तिरंया ।। -श्री सोलह कारण पूजा, धानतराय, राजेश नित्य पूजा पाठ संग्रह,
पृष्ठ १७६ । ६. जो अरहन्त-भगति मन आने ।
सो जन विषय कषाय न जाने ।। -श्री सोलहकारणपूजा, धानतराय, राजेश नित्य पूजा पाठ संग्रह, पृष्ठ १७७ ।