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ईल. मामाहात्मा पर मासारित कवि द्वारा सोलहकारण माग चितवन में सीर्थकर बनना होता है, जिनको सहर्ष इन्द्रादि पूजा कर पुज्यताम अजित करते हैं। पूजाकार का विश्वास है कि जो भक्त अपवा पूजक दर्शन विदि का चितवन करता है उसे मावागमन से मुक्ति मिल जाती है। विनय भावना के चितवन करने से शिव-वनिता-सौख्य उपलब्ध होता है। गोलभावना के द्वारा दूसरों की आपदा-हरण करने का यश प्राप्त होता है। ज्ञानभाषमा के चिन्तवन करने से मोहरूपी अंधकार का समापन हो जाता है।
१. सोलह कारण भाव तीर्थंकर जे भए ।
हर इन्द्र अपार मेरु पले गये । पूजा कवि निज धन्य लख्यो बहु चावसों, हमहूं षोडश कारन भावें भाव सों॥
-श्री सोलह कारण भावना पूजा, द्यानतराय, राजेश नित्य पूजापाठ संग्रह,
राजेन्द्र मेटिल बक्स, अलीगढ़, सन् १९७६, पृष्ठ १७४ । २. दरश विशुद्धि धरे जो कोई ।
ताको आवागमन न होई ॥ -~-श्री सोलह कारण पूजा, धानतराय, राजेश नित्य पूजा पाठ संग्रह,
सन् १९७६, पृष्ठ १७४ । ३. विनय महा धारे जो प्रानी। शिव वनिता की सखी बखानी ॥
~ श्री सोलह कारण पूजा, यानतराय, राजश नित्यपूजापाठ संग्रह,
सन् १९७६ पृष्ठ १७६ ।। ४. शील सदादिड जो नरपालें ।
सो औरन की आपद टालें। -श्री सोलहकारण पूजा, धानतराय, राजेश नित्य पूजा पाठ सग्रह।
पृष्ठ १७६ ॥ ५. ज्ञान अभ्यास करें मनमाहीं।
जाके मोह महातम नाहीं ॥ -~श्री सोलहकारण पूजा, धानतराय, राजेशनित्यपूजा पाठ संग्रह, पृष्ठ १७६ ॥