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के लिए प्राणियों को पीड़ा से बचाते हुए गमन करता है, वस्तुतः ई-समिति कहलाती है।'
भाषा समिति-पशुन्य बचन अर्थात् बुगल बोर के मुख से निकले हुए बबन, हास्य बचन, कर्कश बचन, पर-निन्या, आत्म-प्रशंसात्मक वचनों को छोड़कर अपने और दूसरों के हितल्प बचन बोलना वस्तुतः भावा-समिति कहलाती है।
एषणा समिति-कृत, कारित तथा अनुमोदना दोष से रहित प्रातुक और प्रशस्त तथा अन्य के द्वारा प्रदत्त भोजन को समभाव से ग्रहण करना वस्तुतः एषणा समिति कहलाती है।'
आदान-निक्षेपण-समिति-पुस्तक, कमण्डलु आदि पदार्थों के उठाने-धरने में सावधानता रूप परिणाम को आदान-निक्षेपण समिति कहा है।
प्रतिष्ठापन समिति-छिपे हुए और निष्कण्टक प्रासक भूमि-स्थान में मल-मूत्र आदि का त्याग करना वस्तुतः प्रतिष्ठापन समिति का लक्षण है। १. पासुग मग्गेण दिवा अवलोगंतो जुगप्पमाणंहि ।
गच्छइ पुरदो समणो इरिया समिदी हवे तस्स ।। -नियम सार, व्यवहार चारित्र अधिकार, गाथांक ६१, कुन्दकुन्दाचार्य, श्री सेठी दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला, धन जी स्ट्रीट, बम्बई-३, प्रथम संस्करण १६६०, पृष्ठ ११८ । पेसुण्ण हास कक्कस परणिदप्पप्पसंसियं वयणं । परिचता सपरहिंद भाषा समिदी वदंतस्स ।। —नियमसार, व्यवहार चारित्र अधिकार, गाथांक ६२, कुन्दकुन्दाचार्य, श्री सेठी दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला, धनजी स्ट्रीट, बम्बई-३, प्रथम सस्करण १६६०, पृष्ठ १२१ । कदकारिदाणु मोदणरहिदं तह पासुगं पसत्यं च । दिण्ण परेण भतं समभुती एसणा समिदी। - नियमसार, व्यवहार चारित्र अधिकार, गाथांक ६३, कुन्दकुन्दाचार्य श्री सेटी दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला, धनजी स्ट्रीट, बम्बई-३, प्रथम
सस्करण १६६० पृष्ठ १२३ । ४. पोथइ कमंडलाइं गहण विसग्गेसु पयतपरिणामो।
आदावणणिक्खेवण समिदी होदित्ति णिहिट्ठा ।।
नियमसार, व्यवहार चारित्र अधिकार, गाथाक ६४, वही, पृष्ठ १२६ । ५. पासुग भूमि पदेसे गूढे रहिए परोपरोहेण ।
उच्चारादिच्चागो पइट्ठा समिदी हवे तस्स ।। -नियमसार, व्यवहार चारित्र अधिकार, गाथांक ६५, वही, पृष्ठ १२८ ।