________________
पक्षी - वर्णन
पक्षी हमेशा से मानव हृदय में भावों का उम्र के करते आये हैं। आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की शब्दावलि - 'पक्षी हमारे विनोद का साथी था, रहस्यालाप का दूत था, भविष्य के शुभाशुभ का द्रष्टा था, वियोग का सहारा था, संयोग का योजक था, युद्ध का सन्देश वाहक था और जीवन का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं था जहाँ वह मनुष्य का साथ न देता हो ।" जैन-हिन्दीपूजा काव्य में मानवीय भावों की अभिव्यक्ति के लिए पक्षियों का उपयोग हुआ है। विवेच्य काव्य में प्रयुक्त पक्षियों का अध्ययन कर उनका मूल्यांकन करना यहाँ हमें अभीष्ट रहा है, यथा
काक- भारतीय पक्षी है- काक । यह कोयल की भांति श्याम वर्ण का होता है। धाढपक्ष में इस पक्षी का सामाजिक मूल्य बढ़ जाता है। भारतीय शकुन - परम्परा में इसके प्रातः बोलने से किसी आगन्तुक - आगमन की कल्पना की जाती है। जैन-जैनेतर साहित्य में काक पक्षी का प्रयोग विभिन्न रूप से निम्नांकित लेखनी में इष्टव्य है
१. अशोभनीय वाणी के लिए
२. विकृत तत्वों (अपान) के भक्षक रूप में
३. आलंकारिक प्रयोग के रूप में
४. अशुभ जीव के रूप में
५. उचिष्ठ ( जूठन पर रुचि रखने वाला जीव ६. नरक-वर्णन प्रसंग में
जैन- हिन्दी-पूजा-काव्य में इस पक्षी के अभिवर्शन अठारहवीं शती के उत्कृष्ट पूजाकार यानतराय द्वारा प्रणीत 'श्री वशलक्षण धर्मपूजा' काव्य में होते हैं । कवि ने सांसारिक प्राणी की काम-वासना जन्य मनोवृत्ति का चित्रण करते हुए स्पष्ट किया है कि जिस प्रकार अशोच तन में काम के वशीभूत
१. भारत के पक्षी, राजेश्वर प्रसाद नारायणसिंह, पब्लिकेशन्स डिवीजन, सूचना और प्रसारण मन्त्रालय, दिल्ली, सन् १९५८, पृष्ठ ३० ।