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प्रामी रति-कीड़ा किया करते हैं, उसी काम
को बोलाभरकर काक सुखो होता है।'
कोकिला-पह. पक्षी बसन्तऋतु में,जान-मंजरियों में प्रसन्न पंचम स्वर में गाता है। इसकी स्वर-साधा और कलित काकसी प्रसिद..। साहित्य में इसका स्थान अनुग्ण है। कोकिला का व्यवहार हिन्दी वाङमय में सुन्दर स्वर के लिए तथा जिनवाणी एवं मिथ्यावाणी के परस्पर तुलनात्मक सम्वों में परिलक्षित है।
जेन-हिन्दी पूजा-काव्य में कोकिला का उल्लेख अठारहवीं शती में मिलता है। इस काल के पूजा रचयिता द्यानतराय ने 'श्री बहतसिवचक पूजामाया' नामक कृति में इस पक्षी का प्रयोग परम्परानुमोदित सुन्दर स्वर के लिए किया है।'
गरड़-गवड चील की तरह एक पक्षी है। यह नाग नामक कीट का घोर शायु होता है। बारहमासा साहित्य में गड़ प्रियतम को उपमान के लिए लाया गया है क्योंकि विरहिणी नायिका को माग सम्बो विस रहा है। गए रूपी पति द्वारा ही वह निर्भय हो पाती है।'
जैन-हिन्दी-पूजा-काव्य में अठारहवीं शती • से गहा पक्षी के अमितान होते हैं। इस शती के कवयिता व्यानतख्य द्वारा प्रमीत 'भीषशास्त्र गुरुपूजा' और 'श्री बोसतीचंकर पूजा" नामक-पूजा, रचनाओं में गव का १. कूरे तिया के अशुधि तन मे,
कामरोगी रति करे। बहु मृतक सड़हिं मसान माही, काक ज्यों पोचे भरें।
-श्री दशलकामापूजा, दयानतराय, पूजापाठ संग्रह पृष्ठ ६७ । २. सुस्वर उदय कोकिला बानी,
सुस्वर गर्द-बनि सम पानी।
-श्रीबृहद सिद्धवक्र पूजाभाषा, दयाननसय जैनपूजापाठ-संग्रह, पृ. २४२ ३. हिन्दी का बारहमासा साहित्य : उसका इतिहास तथा अध्ययन, ग. महेन्द्र
सागर प्रचंडिया, पृष्ठ २४५ । ४. अति सबल मद कंद जाको, क्षुधा-उरग अमान है।
दुस्सह भयानक तासु नाशन को सुगन, समान है। -श्रीदेवशास्त्र गुरुपूजा, दयानतराय, जैनपूजापाठ संग्रहा..पुष्ठ १६ । काम-नाम विषधाम, नाश को गल कहेोत्र - श्रीबीसतीर्थकर भूजा, पालतराय, पूजापाठ संग्रह, पुरु.३४ ।