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मतवा जबाहरलाल प्रगीत 'भो अब समुन्वय पूना" नामक पूजाहति में र पुष्प धवलता गुण तथा प्रकृति वर्णन के लिए हमा है।
कदंब-कब सुगन्धित पुष्प है। जन-हिन्दी पूषा-काम में सलीलयों शती के पूनाकार रामचन्द्र ने 'श्री गिरिनार सिरोष पूना' मानक पूजा में फर्दर पुष्प का प्रयोग आलम्बन रूप में सामग्री के लिए किया है। इसी प्रकार बीसवीं शती में भी कर का प्रयोग समुन्वय बोबीसी पूजा काव्य में सामग्री-व्य के लिए हमा है।'
कुरर-बीसवीं शती के पूजाकाव्य में 'कुरं' का प्रयोग पूजा-अप के लिए हुआ है।
केतकी-एक पुष्प का नाम जिसका रसपान भ्रमर चाव से किया करते हैं। केतकी चम्पा की भांति खिला करती है किन्तु विरहिणी नायिका को यह अतीव दुःख देती है। जन-जनेतर-हिन्दी-साहित्य में केतकी का उल्लेख निम्न रूपों में हुआ है -
(१) प्रकृति वर्णन के लिए। (२) नायिका द्वारा नायक को आकर्षित करने के लिए। (३) मालंकारिक रूप में वर्णन करने के लिए।
जैन-हिन्दी-पूमा-काव्य में उन्नीसवी शती के पूजा प्रणेता ममरंगलाल विरचित 'धी अथ सप्तर्षि पूजा एवं 'श्री नेमिनाय जिनपूजा नामक प्रणा कृतियों में इस पुष्प का उल्लेख मिलता है। इस शती के अन्य कविताबार
१. कुंद कमलादिक चमेली गंधकर मधुकर फिरें।
-श्री अथ समुच्चयपूजा, जवाहरलाल, यह जिनवाणी संग्रह, पृ०४६७ । २. श्री मिरिनार सिद्धक्षेत्र पूजा, रामचन्द्र, जन पूजापाठ संग्रह, पृष्ठ १४२ । ३. वरकंज कदंब कुरंड, सुमन सुगन्ध भरे ।
-श्री समुच्चय चौबीसी पूजा, सेवक, बृहजिनवाणीसंग्रह, पृष्ठ ३३५ । ४. वही। ५. केतकी चम्पा चारु मरुवा,
पुने निजकर चाव के। --श्री अथ सप्तर्षि पूजा, मनरंगलाल, राजेश निस्य पूजापाठ संग्रह,
६. केतकी पम्पा चारु मरुवा पुष्प भाव सुताव के ।
-श्री नेमिनाम जिनपूजा, मनरंगलाल, मानपीठपूजांजलि, पृष्ठ ३६६।