________________
( ३२६ ) रानमारा श्री पार्श्वनाथ जिनपूजा" नामक पूजा में तथा कवि मल्ली विरचित 'श्री मावाणी पूजा" नामक कृति में केतको पुष्प का व्यवहार पूजा की सामग्री-द्रव्य के लिए हुआ है।
बीसवीं शती में कविवर सेवक', बीपचंद और पूरगन' ने केतकी पुष्प का प्रयोग सामग्री के संदर्भ में किया है।
केवड़ा-यह पुष्प 'बाल' रूप में होता है। इसकी सुगंध अत्यन्त मधुर और शीतल होती है। हिन्दी काव्य में प्रकृति वर्णन और शृंगार प्रसाधन रूप में इसका प्रयोग हुआ है। स्वकीया नायिका विविध पुष्पों के साथ केवड़ा पुष्प का हार बनाकर शृंगार करती है।
जैन हिन्दी पूजा काव्य में उन्नीसवीं शती में बख्तावररत्न द्वारा केवड़ा पुष्प का प्रयोग सामग्री के अन्तर्गत हुआ है। बीसवीं शती में कविवर सेवक, भगवानदास द्वारा प्रणोत क्रमशः अनन्त व्रत पूजा' तथा 'श्री तत्वार्थ सूत्र पूजा नामक काव्य में केवड़ा का प्रयोग सामग्री संदर्भ में हुआ है।
गलाब- श्वेत और अरुण वर्ण का पुष्प-विशेष गुलाब होता है। यह प्रायः चेत्रमास में मुकुलित होता है । अपने सौन्दर्य तथा शीतल गुण के लिए
१. केवड़ा गुलाब और केतकी चुनाइये।
श्री पार्श्वनाथ जिनपूजा, बख्तावररत्न, ज्ञानपीठ पूजांजलि, पृष्ठ ३७२ । २. श्री अमावाणी पूजा, मल्लजी, ज्ञानपीठ पूजांजलि, पृष्ठ ४०३ । ३. श्री आदिनाथ जिनपूजा, जैन पूजापाठ संग्रह, पृष्ठ ६६ । ४. श्री बाहुवली पूजा, नित्य नियम विशेष पूजा संग्रह, पृष्ठ ६३ । ५. वेलर केतकी गुलाब चम्पा कमललऊँ।
-श्री चांदन गांव महावीर स्वामी पूजा, जैनपूजापाठसंग्रह, पृष्ठ १६० । ६. हिन्दी का बारहमासा साहित्य उसका इतिहास तथा अध्ययन, गे.
महेन्द्रसागर प्रचण्डिया, चतुर्थ अध्याय, अनुच्छेद ३६०, पृष्ठ २८८ । ७. श्री पार्श्वनाथ जिनपूजा, बख्तावररत्न, ज्ञानपीठपूजांजलि, पृष्ठ ३७२ । ८. श्री अनन्तब्रत पूजा, जैनपूजापाठ सग्रह, पृष्ठ २६६ । ६. सुमन बैल चमेलिहि केवरा,
जिन सुगंध दशों दिश विस्तारा । -~-श्री तत्वार्थसूत्रपूजा, भगवानदास, जनपूजापाठसंग्रह, पृष्ठ ४१.।