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weat शती में जिनेश्वरवाल' और नेम' ने अपनी पूजा काव्य कृतियों में हु'दुभि वाद्य का व्यवहार किया है।
निसान - निशाण या निसान को तम्बूरा और चौतारा भी कहा जाता । इसमें चार तार होते हैं । यह तानपूरा अथवा सितारा से मिलता-जुलता । यह लकड़ी का बना होता है। बाएं हाथ से इसे पकड़ कर बाएं हाथ से बजाया जाता है। जोगीजन इस पर ही प्रायः भजन गाते है । यह तार बाय यंत्र है।
जैन- हिन्दी- पूजा-काव्य में उन्नीसवीं शती के कवि कमलनयन रचित 'श्री पंचकल्याणक पूजापाठ' नामक पूजाकृति में निसान बाक्ययंत्र का प्रयोग द्रष्टव्य है ।"
नुपुर - घुंघरू का अपरनाम ही नूपुर है। इसे पैर में बांध कर नृत्य किया जाता है। इसकी ध्वनि मधुर होती है। यह तार बाध्य है । 'कृष्ण-विबाणी' मीरा का तो यह प्रिय वाक्य है ।
१. जिनके सन्मुख ठाढे इन्द्र नरेन्द्रजी । नभ में दुन्दुभि को धुनि भारी ॥ वर्षे फूल सुगन्ध अपारी । जिनके सम्मुख ठाढ़े इन्द्र नरेन्द्र जी ॥
- श्री नेमिनाथ जिनपूजा, जिनेश्वरदास, जैमपूजापाठ संग्रह, पृष्ठ ११४ ।
२. भामण्डल की छवि कौन गाय ।
फुनि चंवर तुरत चोसठि लखाय ॥ जय दुन्दुभि रव
अद्भुत सुनाय ।
जय पुष्प वृष्टि गन्धोदकाय ||
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- श्री अकृत्रिम चैत्यालयपूजा, नेम, जैन पूजापाठ संग्रह, पृष्ठ २५५ ।
३. बाजन अधिक बजाय गाय गुण सार जू ।
भेरि निसान सु झांझ झना झनकार जू ।। विधि संक्षेप कही पूजा की सार जू । इन्द्रध्वज आादिक जे बहु विस्तार जू ।।
- श्री पंचकल्याणक पूजापाठ, कमलनयन, हस्तलिखित |