________________
( १९१ )
atest शती के कविवर सेवक प्रणीत 'श्री आदिनाथ जिनपूजा' नामक पूजाकाव्य कृति में उदाहरण अलंकार व्यवहृत है ।"
इस प्रकार जैन- हिन्दी- पूजा- काव्य में उदाहरण अलंकार का सर्वाधिक, प्रयोग अठारहवीं शती के कवि यानतराय की पूजाकाव्य कृतियों में दृष्टिगोचर होता है ।
---
जन- हिन्दी-पूजा काव्य में रूपक अलंकार अपने निरंग रूप में प्रयुक्त है । रूपक में गृहीत उपमानों में इन कवियों द्वारा स्वतंत्रता रखी गई है। रूढ़िवच, रूढ़िमुक्त उपमानों के साथ-साथ अनेक नवीन उपमान भी गृहीत हैं । यहाँ इस वृष्टि से निम्न रूप में अध्ययन किया जा सकता है ।
ય
अठारहवीं शती में विरचित जन- हिन्दी-पूजाओं में मोह, भव तथा ज्ञान उपमेय के लिए क्रमश : तम, सागर' और दीप' नामक रूढ़िबद्ध उपमान रूपक अलंकार में व्यवह त है ।
इसी शती में सम्यक् चारित्र, मुक्ति और शील उपमेय के लिए क्रमशः
१. कठिन कठिन कर नीसर्यो, जैसे निसरं जती मे तार हो ।
- श्री आदिनाथ जिनपूजा, सेवक, सगृहीतग्रथ - जैनपूजापाठ संग्रह, भागचन्द्र पाटनी, न० ६२, नलिनी सेठ रोड, कलकत्ता-७, पृष्ठ ६६ ।
२. ज्ञानाभ्यास करे मन माही, ताके मोह महातम नाही ॥
- श्री सोलह कारण पूजा, यानतराय, सगृहीतयथ - राजेश नित्य, पूजापाठ संग्रह, राजेन्द्र मेटिल वर्क्स, हरिनगर, अलीगढ़, १६७६ पृष्ठ १७६ ।
३. भवसागर सों ले तिरे, पूजें जिन वच प्रीति ।
- श्री सरस्वती
--
पूजा द्यानतराय, संगृहीतग्रंथ - राजेश नित्य पूजापाठ संग्रह, राजेन्द्र मेटिल वक्सं, हरिनगर, अलीगढ़, १६७६, पृष्ठ ३७५ ।
४. तिहि कर्मघाती ज्ञान दीप प्रकाश जोति प्रभावती ।
- श्री अथ देवशास्त्र गुरु की भाषा पूजा, दयानतराय, संग्रहीत पंथजैन पूजापाठ संग्रह, भागचन्द्र पाटनी, नं० ६२, मलिनी सेठ रोड, कलकत्ता-७, पृष्ठ १८ ।